भ्रष्टाचार के खिलाफ एकजुट होकर फिर से आवाज उठानी होगी, क्यों कि देश की अर्थव्यवस्था ताक पर है। बावजूद इसके
सरकार ने भ्रष्ट तंत्र के खिलाफ अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। हर बार सरकार अर्थव्यवस्था
की दुहाई देकर बच निकलती है, लेकिन क्या देश की अर्थव्यवस्था
इतनी मजबूत स्थिति में है कि वह विश्व के दूसरे देशों का मुकाबला कर सके। शायद नहीं,
क्यों कि देश के राजनेता तो सिर्फ अपना घर सजाने सवारने में जुटे हुए
हैं। फिर चाहे इसके लिए कितने लोगों की लाशों पर से गुजरना पड़े। इसका सबसे बड़ा उदाहरण
देखने को मिला राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन यानी NRHM घोटाले में। जिसमें करीब साढ़े सात हजार
करोड़ रुपए का भारी भरकम घोटाला हुआ। इस घोटाले की छानबीन के दौरान कई लोगों की जान
गई। लेकिन मामले की जांच अभी भी जारी है। वहीं सबसे बड़ा घोटाला तो खुद प्रधानमंत्री
के कार्यकाल में निकल कर सामने आया है। कोयला खनन क्षेत्रों के आवंटन में निजी और सरकारी
कंपनियों को 10.67 लाख करोड़ रुपए
का फायदा कराया गया। यानी सरकारी खजाने को 10.67 लाख करोड़ रुपए
के राजस्व का नुकसान हुआ है। ये इतना बड़ा घोटाला है जो देश की अर्थव्यवस्था की कमर
तोड़ दे। हालांकि इस मामले जांच जारी है, लेकिन ऐसे ही कई और
घोटाले सामने आए हैं जो देश के बड़े राजनेताओं के दामन को दागदार कर रहे हैं। फिर सरकार
किस प्रकार से उम्मीद को हवा दे सकती है कि देश कि अर्थव्यवस्था 2012-13 में 7.6 फीसदी और 2013-14 में
8.6 फीसदी रह सकती है, लेकिन कैसे ये शायद बड़ा
सवाल है। सरकार शायद भूल गई है कि जिस देश की वे बात कर रहे हैं वहां करीब
60 से 70 फीसदी लोग खेती-बाड़ी पर निर्भर हैं, बावजूद इसके बजट के दौरान वित्तमंत्री
प्रणब मुखर्जी सिर्फ कर जुटाने में ज्यादा तबज्जों देते नजर आए या फिर कॉरपोरेट जगत
को खुश करते दिखे। लेकिन किसानों की गंभीर हालत को लेकर सरकार इतनी सजग नहीं दिखी जितनी
होनी चाहिए। वहीं बात करें कॉरपोरेट जगत की तो वित्तीय हालत से परेशान किगंफिशर एयरलाइंस
को सरकार कभी राहत पैकेज देने की बात करती है, तो कभी पीएसयू
बैंकों या दूसरी कंपनियों के माध्यम से उसकी मदद। लेकिन सरकारी मदद का पैसा तो आम आदमी
की जेब से ही जाएगा। फिर सरकार उन उद्योगपतियों को ही राहत देने की बात क्यों करती
है, किसानों की क्यों नहीं ! जिसके विकास
में ही देश का सुखद भविष्य छिपा है। लेकिन ये सुखद भविष्य अब अंधकारमय है। देश में
हर व्यक्ति अपने बेटे को अच्छा डॉक्टर, बिजनेसमैन, या एक अच्छा इंजीनियर बनाना चाहता है, लेकिन किसान कोई
भी नहीं। फिर किसानों का क्या,, यानी आने वाले समय में किसानों
की संख्या निरंतर घटती रहेगी, जो कि सोचनीय है। हमारे देश
में किसान आत्म हत्या कर रहे है , लोग भूखे मर रहे हैं ,
और ऐसे समय में भारत का बड़ा काला धन विदेशो में पड़ा है। सरकार कालेधन को लेकर
चिंता जाहिर तो करती है, लेकिन इसे लाने को लेकर सजग नहीं दिखती, क्योंकि काली
कमाई का ये सारा धन है तो बड़े राजनेताओं का ही। फिर चाहे वह पक्ष हो या विपक्षी
पार्टियां जोर-शोर तो सब करते हैं लेकिन इसके पीछे उदासीनता कम ही लोगों में है।
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