एक
सैलाब आया कैसा
हर-तरफ का मंजर ऐसा
बिछी अपनो की लाशें
कोई यहां ढूंढे, कोई वहां ढूंढे
अपनों का पता लगाएं कैसे
दर्दनाक था पूरा हादसा
चारो-तरफ अपनों की चीख पुकार
हर चेहरे पर बस यही सवाल
एक सैलाब आया कैसा
क्या प्रकृति का प्रकोप ऐसा
या अपनों का ही ये काम
अरण्य काटे, तरू काटे, गिर
काटे
हर काट की राह हम बनाते
विकास के पथ पर चलकर
नई सफलता के झंडे दिखाते
प्रकृति में कोह पैदा कर
हम किस मुकाम पर नजर आते
सत्य की राह नहीं इतनी आसान
फिर क्यों नहीं ये समझ पाते। –विकास
सक्सेना
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