Thursday 30 May 2013

पत्रकारिता मायने आजादी


     बदलते समय के साथ-साथ हिंदी पत्रकारिता ने आज 187 वर्ष पूरे कर लिए हैं।  भारतीय पत्रकारिता के इतिहास में 30 मई का दिन हिंदी पत्रकारिता के रूप में मनाया जाता है। 30 मई 1826 को पं. युगुल किशोर शुक्ल ने देश के पहले हिन्दी समाचार पत्र उदंत मार्तण्ड का प्रकाशन व संपादन किया। हालांकि इससे पहले भारत में कई समाचार पत्रों का प्रकाशन होता था, लेकिन वे सब अंग्रेज़ी, फारसी और बांग्ला में थे। किंतु हिंदी में एक भी पत्र नहीं निकलता था। इसलिए उदंत मार्तडका प्रकाशन शुरू किया गया। इसके संपादक भी श्री जुगुलकिशोर शुक्ल ही थे। वे मूल रूप से कानपुर के निवासी थे। कलकता के कोलू टोला नामक मोहल्ले की 37 नंबर आमड़तल्ला गली से पं. जुगलकिशोर शुक्ल ने सन् 1826 ई. में उदन्त मार्तण्ड नामक एक हिंदी साप्ताहिक पत्र निकालने का आयोजन किया।

      उदन्त मार्तण्ड का शाब्दिक अर्थ है समाचार-सूर्य। अपने नाम के अनुरूप ही उदन्त मार्तण्ड हिंदी की समाचार दुनिया के सूर्य के समान ही था। उदन्त मार्तण्ड का प्रकाशन मूलतः कानपुर निवासी पं. युगल किशोर शुक्ल ने किया था। यह पत्र ऐसे समय में प्रकाशित हुआ था जब हिंदी भाषियों को अपनी भाषा के पत्र की आवश्यकता महसूस हो रही थी। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर उदन्त मार्तण्डका प्रकाशन किया गया था।

     उदंत मार्तण्ड ने समाज में चल रहे विरोधाभासों एवं अंग्रेज़ी शासन के विरूद्ध आम जन की आवाज़ को उठाने का कार्य किया था। कानूनी कारणों एवं ग्राहकों के पर्याप्त सहयोग न देने के कारण 19 दिसंबर, 1827 को युगल किशोर शुक्ल को उदन्त मार्तण्ड का प्रकाशन बंद करना पड़ा। हिंदी और पत्रकारिता से अपने प्रेम को पं. जुगल किशोर ने जो आयाम दिया वह अविस्मर्णीय है।
     कागज से शुरू हुई पत्रकारिता अब कन्वर्जेंस के युग में पहुंच गई है। कन्वर्जेंस के कारण आज खबरें रेडियो, टेलीविजन, इंटरनेट और मोबाइल पर कई रूपों में उपलब्ध है। पहले की पत्रकारिता ने देश के स्वतंत्रता में अहम योगदान निभाया लेकिन आज की पत्रकारिता के मायने कहीं खो से गए हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि अब यह पूरी तरह से पूंजीवाद पर निर्भर है।

     भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अंग्रेजी और भाषाई पत्रकारिता की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। ईस्ट इंडिया कंपनी की दमननीति के विरुद्ध आवाज के रूप में स्वाधीनता की प्रबल उमंग ने पत्रकारिता की नींव डाली थी। उस समय पत्रकारिता का मूल उद्देश्य अंग्रेजों की दमन नीतियों को हटाना, समाज सुधार, समाज में स्त्रियों की स्थिति में सुधार और रूढि़यों का उन्मूलन था। उस समय पत्रकारिता के सामाजिक सरोकार शीर्ष पर थे और व्यावसायिक प्रतिबद्धताएं इनमें बाधक नहीं थीं। इस पत्र के माध्यम से ही पं. युगुल किशोर ने शोले की तरह अपनी प्रखर व तेजस्वनी वाणी से जनता में स्वतंत्रता की भावना भर दी। इस पर वरिष्ठ पत्रकार जगदीश प्रसाद चतुर्वेदी ने लिखा है - जहां तक क्रांतिकारी आंदोलन का संबंध है भारत का क्रांतिकारी आंदोलन बंदूक और बम के साथ नही समाचारपत्रों से शुरु हुआ है।

    आर्थिक कठिनाइयों के कारण हिंदी के आदि पत्रकार पं. जुगल किशोर शुक्ल ने 'उदंत मार्तंड' का प्रकाशन बंद कर दिया था, किंतु इसका अर्थ यह नहीं कि आर्थिक कठिनाइयों ने उनकी निष्ठा को ही खंडित कर दिया था। यदि उनकी निष्ठा टूट गई होती तो वे पुनः पत्र-प्रकाशन का साहस न करते। उन्होंने 1850 में दोबारा से 'सामदंत मार्तंड' नाम का एक पत्र प्रकाशित किया था।

     हालांकि भारत में पत्रकारिता की नींव जेम्स अगस्टन हिक्की ने रखी। हिक्की भारत के प्रथम पत्रकार थे जिन्होंने प्रेस की स्वतंत्रता के लिये ब्रिटिश सरकार से संघर्ष किया। 29 जनवरी 1780 में पहला भारतीय समाचार पत्र बंगाल गजट एंड कलकत्ता एडवरटाइजर्स कलकत्ता से अंग्रजी में निकाला। इसका आदर्श वाक्य था - सभी के लिये खुला फिर भी किसी से प्रभावित नहीं। अपने निर्भीक आचरण और विवेक पर अड़े रहने के कारण हिक्की को इस्ट इंडिया कंपनी का कोपभाजन बनना पड़ा। हेस्टिंगस सरकार की शासन शैली की कटू आलोचना का पुरस्कार हिक्की को जेल यातना के रूप में मिली।

      स्वतंत्रता आंदोलन के समय में कई संपादकों को जेल की यातनाओं को भी सहन करना पड़ा। बावजूद इसके पत्रकारिता ने अपनी गरिमा को बरकरार रखा। लेकिन आधुनिक युग की पत्रकारिता में आए कई तरह के बदलाव ने पत्रकारिता की गरिमा को ताक पर रख दिया है। 

Thursday 23 May 2013

अरूणिमा, तुम्हारी सफलता को सलाम



   अरूणिमा क्या तुम वही खिलाड़ी हो जिसे हम सबने भूला दिया था। तुम्हारे साथ हुए हादसे के चंद दिनों बाद ही जब तुम ख़बर से दूर क्या हुईं, हम शायद तुम्हारे प्रतिभा को भूल गए थे। हम भूल गए कि तुम एक खिलाड़ी हो और खिलाड़ी की प्रतिभा कभी मरती नहीं है, वो हमेशा जीवित रहती है। तुमने जो कारनामा कर दिखाया है अरूणिमा उसे पूरा देश सलाम करता है।  

  एक तरफ जहां भारत के पास अरूणिमा जैसी होनहार खिलाड़ी है, तो वहीं दूसरी ओर भारत के पास कुछ ऐसे भी खिलाड़ी है जो देश की गरिमा और अखंडता को तार-तार करते हैं, वो भी शायद कुछ पैसों के लिए। आईपीएल में इन दिनों स्पॉट फिक्सिंग का मामला जोरो पर है। स्पॉट फिक्सिंग में फंसे क्रिकेटर जहां क्रिकेट प्रेमियों को दु:ख पहुंचाते हैं। वहीं अरूणिमा जैसे प्रतिभावान खिलाड़ी चुपचाप ऐसी इबारत लिख जाते हैं जिसे खेल प्रेमी गर्व महसूस करते हैं। सच में अरूणिमा ने वो कारनामा कर दिखाया है जिससे न सिर्फ खेल प्रेमी बल्कि भारत का हर नौजवान भारतीय होने पर गर्व महसूस करे। 25 वर्षीय विकलांग अरुणिमा ने ऐसा अजूबा कर दिखाया, जिसे हर कोई सलाम कर रहा है। अरुणिमा ने प्रोस्‍थेटिक पैरों की मदद से माउंट एवरेस्‍ट पर विजय हासिल की और ऐसा करने वाली वह विश्‍व की पहली विकलांग महिला बन गई।

     ‘पंगु लंघै गिरिवर अनयअरूणिमा ने इस कहावत को सच साबित कर दिया, कि कोई ताकत है जो लंगड़े को भी पहाड़ लांघने की शक्ति देती है। दो वर्ष पहले अरुणिमा सिन्हा ने एक रेल दुर्घटना में अपना पैर गंवा दिया था। किंतु उन्होंने माउंट एवरेस्ट पर विजय प्राप्त करके संकल्प व साहस का नया उदाहरण पेश किया है। इस भारतीय महिला ने 21 मई 2013 को प्रातः यह कारनामा कर दिखाया। इतिहास के पन्नों में अब हमेशा ये तारीख याद रखी जाएगी। अरूणिमा मूल रूप से उत्तर प्रदेश के अम्बेडकर नगर की रहने वाली है। अरुणिमा विकलांग होने से पहले राष्ट्रीस्तर की वॉलीबॉल खिलाड़ी थीं। 12 अप्रैल 2011 में लखनऊ से दिल्ली आते समय कुछ अपराधियों ने पदमावती एक्सप्रेस से उसे बाहर फेंक दिया था, जिसके कारण उनका बायां पैर ट्रेन से कट गया था। हालांकि इससे पहले पुरुषों में एक ब्रिटिश पर्वतारोही टॉम वैटकर ने 1998 में माउंट एवरेस्ट पर विजय प्राप्त करने वाले पहले विकलांग पुरुष का सम्मान प्राप्त किया था।

   अरुणिमा ने टाटा स्‍टील एडवेंचर फाउंडेशन के सहयोग से विश्‍व की सबसे ऊंची चोटी पर मंगलवार सुबह 10 बजकर 55 मिनट पर तिरंगा फहराया। यह संयोग ही है कि उन्‍होंने यह महान उपलब्धि सर एडमंड हिलेरी एवं तेनजिंग नॉर्गे द्वारा 29 मई, 1953 को विश्‍व की सर्वोच्‍च चोटी पर हासिल की गई विजय की 60वीं जयंती पर हासिल की। अरुणिमा ने टाटा स्‍टील एडवेंचर फाउंडेशन (टीएसएएफ) की चीफ एवं एवरेस्‍ट पर फतह हासिल करने वाली पहली भारतीय महिला सुश्री बचेन्‍द्री पाल के मार्गदर्शन में प्रशिक्षण हासिल किया। अरुणिमा ने अपनी यात्रा काठमांडू से प्रारंभ की और अपना अभियान 52 दिनों में पूरा किया। 

   अगर हौंसले हों बुलंद और इरादे हो मजबूत तो मंजिल कदमों में आ झुकती है। अपने इस इरादों से अरूणिमा ने ये साबित कर दिया है कि दुनिया में कोई ऐसा नहीं है जिसे पूरा न किया जा सके। इस आर्टिकल के जरिए मै इतना जरूर कहना चाहूंगा कि अरूणिमा जैसी प्रतिभावान ने खिलाड़ी ने खिलाड़ियों को एक मैसेज जरूर दिया है जो देश के प्रति नहीं बल्कि अपने लिए खेलते हैं, अपनी जरूरतों के लिए और चंद पैसे को लिए खेलते हैं। वो शायद ये भूल जाते हैं कि जिस देश में खेल को धर्मस्थल माना जाता है खिलाड़ियों को देवता मान लेते हैं लोग, उसी देश में खेल के प्रति गद्दारी करने वालों खिलाड़ियों का क्या अंजाम हो सकता है, ये तो आप सबके सामने हैं। 

Tuesday 21 May 2013

आईपीएल का सावन आया ऐसा, टूट गई सारी आस


ये कैसी विडम्बना है कि अब छोटे-मोटे मैचों की भी फिक्सिंग होने लगी है। क्या कुछ खिलाड़ियों को पैसे की इतनी ज्यादा जरूरत आ पड़ी है कि वे अब फिक्सिंग तक उतर आए हैं, या फिर वे शार्टकट से पैसा कमाने की ज़द्दोज़हद में जुट गए हैं, क्या उन्हें अपनी काबलियत पर शक़ होने लगा है? दरअसल प्रतिस्पर्धा की इस दौड़ में नए और प्रतिभावान खिलाड़ी कहीं ज्यादा आगे निकल जाते हैं। और हालहीं में बनें कुछ सीनियर्स खिलाड़ी अपनी पैठ जमाने में नाकामयाब साबित होते हैं। ये नाकामयाबी ही उन्हें शार्टकट का दरवाजा दिखाती है। वैसे मैच फिक्सिंग का मामला हमेशा से सवालों के घेरे में रहा है। 
      
       स्पॉट फिक्सिंग के आरोप में फंसे राजस्थान रॉयल्स के श्रीसंत, अजीत संडीला और अंकित चाव्हाण की गिरफ्तारी से दूसरे खिलाड़ी ही नहीं बल्कि क्रिकेट प्रेमी भी दुखी होने से ज्यादा आक्रोशित हैं। क्रिकेटरों ने क्रिकेट के साथ ही नहीं बल्कि खेल प्रेमियों के साथ भी धोखा किया है। क्योंकि भारत में क्रिकेट की सफलता की वजह ऐसे क्रिकेट प्रेमी हैं जो कि इस खेल को मजहब की तरह देखते हैं, ऐसे में इस खेल में हुई यह शर्मनाक घटना खेल की लोकप्रियता को प्रभावित करती है। मैच फिक्सिंग में मुकाबले का फैसला ही फिक्स हो जाता है। कोई खिलाड़ी या टीम का कप्तान या तीन-चार खिलाड़ी मिलकर यह तय कर लेते हैं कि अमुक मैच हारना है। लेकिन स्पॉट फिक्सिंग को ज्यादा तवज्जों इसलिए मिलने लगी क्यों कि इसमें मैच फिक्सिंग की अपेक्षा जोखिम कम होता है। स्पॉट फिक्सिंग के अंतर्गत किसी विशेष गेंदबाज या बल्लेबाज को जरिया बनाकर कोई ओवर या कुछ गेंद या फिर मैच का कोई अहम हिस्सा फिक्स कराते हैं।

       स्पाट फिक्सिंग का यह काला जादू आईपीएल सीजन-5 में भी देखने को मिला था। इस मामले में पांच खिलाड़ियों को दोषी पाया गया था। मोहनीश मिश्रा, शलभ श्रीवास्तव, टीपी सुधींद्र, हरमीत सिंह और अभिनव बाली को इस मामले में दोषी पाया गया था। हालांकि ये अजीब सा संयोग ही है कि जब तीन प्रतिभाशाली क्रिकेटरों पर स्पॉट फिक्सिंग को लेकर लगाया गया एक साल का प्रतिबंध खत्म हुआ उसके कुछ समय बाद ही स्पॉट फिक्सिंग के नए काले कारनामों का खुलासा हुआ और उसमें भी तीन खिलाड़ियों को दोषी पाया गया। आईपीएल सीजन-5 में काले धब्बें गोवा के ऑफ स्पिनर अमित यादव, मध्य प्रदेश के बल्लेबाज मोहनीश मिश्रा व हिमाचल प्रदेश के आलराउंडर अभिनव बाली पर लगे थे। इन लोगों पर अब एक साल का प्रतिबंध का काला अध्याय समाप्त हो चुका है। जबकि मध्य प्रदेश के गेंदबाज टीपी सुधींद्र पर आजीवन व यूपी के गेंदबाज शलभ श्रीवास्तव पर पांच साल का प्रतिबंध लगाया गया था।

       आईपीएल के अलावा अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में भी स्पॉट फिक्सिंग के कई मामले सामने आ चुके हैं। क्रिकेट की दुनिया में सबसे पहले मैच फिक्सिंग का मामला सामने आया था 1994 में पाकिस्तान क्रिकेट टीम के कप्तान सलीम मलिक पर मैच फिक्स करने और ऑस्ट्रेलिया के पाकिस्तान दौरे पर शेन वार्न और मार्क वा को लचर प्रदर्शन करने के लिए पैसे की पेशकश का आरोप लगा। ऑस्ट्रेलिया के खिलाड़ी शेन वॉर्न और मार्क वॉ पर 1994 में ही श्रीलंका दौरे के दौरान सटोरियों को पिच और मौसम के बारे में जानकारी देने का आरोप लगा उन्हें जुर्माना भी भरना पड़ा। उसके बाद फिक्सिंग का सिलसिला चल पड़ा। 1996 में भारतीय क्रिकेट टीम के मैनेजर सुनील देव ने कुछ भारतीय क्रिकेटरों पर मैच फिक्सिंग के लिए पैसे मांगने का आरोप लगाया। 1997 में मनोज प्रभाकर ने साथी क्रिकेटरों पर 1994 के श्रीलंका दौरे के दौरान फिक्सिंग कराने के लिए 25 लाख रुपए दिलाने का आरोप लगाया।
       1998 में पाकिस्तानी गेंदबाज अताउर रहमान और वसीम अकरम पर न्यूजीलैंड के खिलाफ खराब गेंदबाजी करने के लिए तीन लाख डॉलर की पेशकश करने का आरोप लगा। 1998 में पाक क्रिकेटर राशिद लतीफ ने वसीम अकरम, सलीम मलिक, इंजमाम उल हक और एजाज अहमद पर मैच फिक्सिंग का आरोप लगाया। 1998 में शेन वार्न और मार्क वा ने माना कि उन्होंने वर्ष 1994 में श्रीलंका में खेले गए सिंगर कप के दौरान मौसम और पिच की जानकारी सट्टेबाज को बेची थी।
       2000 में दिल्ली पुलिस ने दक्षिण अफ्रीका के कप्तान हैंसी क्रोन्ये पर भारत के खिलाफ वनडे मैच में फिक्सिंग कराने का आरोप लगाया। हर्शेल गिब्स, पीटर स्ट्राइडम और निकी बोए पर भी उंगलियां उठी थीं। क्रोन्ये ने स्वीकार किया कि उन्होंने भारत में खेली गई एक दिवसीय सीरीज के दौरान अहम सूचनाएं 10 से 15 हजार डॉलर में बेचीं। अप्रैल 2000 में अफ्रीकी टीम के भारतीय टीम से 1994 में मुंबई में खेले गए एक मुकाबले में दो लाख पचास हजार डॉलर लेकर मैच हारने का खुलासा हुआ।

       जून 2000 में अफ्रीकी खिलाड़ी हर्शेल गिब्स ने स्वीकार किया था कि उनके एक पूर्व कप्तान ने उन्हें भारत में खेले गए एक मुकाबले में 20 से कम रन बनाने को कहा था। इसके बदले में उन्हें 15 हजार डॉलर दिए गए। 2000 में ही दक्षिण अफ्रीका के क्रिकेट प्रमुख अली बशिर ने खुलासा किया था कि पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड के पूर्व सीईओ माजिद खान ने उन्हें बताया है कि विश्व कप-1999 के दो मैच पहले से ही फिक्स थे। ये मैच पाकिस्तान ने भारत और श्रीलंका के खिलाफ खेले थे। जून 2000 में क्रोन्ये ने कहा कि उन्होंने एक मैच में फिक्सिंग के लिए एक लाख डॉलर लिए थे। मगर मैच फिक्स नहीं किया। जुलाई 2000 में आयकर विभाग ने कपिल देव, अजहरुद्दीन, अजय जडेजा, नयन मोंगिया और निखिल चोपड़ा के माकानों पर छापे मारे। अक्टूबर 2000 में क्रोन्ये पर आजीवन प्रतिबंध लगाया गया। नवंबर 2000 में अजहरुद्दीन को फिक्सिंग का दोषी पाया गया जबकि अजय जडेजा, मनोज प्रभाकर, अजय शर्मा और भारतीय टीम के पूर्व फीजियो अली ईरानी के संबंध सट्टेबाजों से होने की पुष्टि की गई। दिसंबर 2000 में अजहरुद्दीन और अजय शर्मा पर आजीवन प्रतिबंध लगाया गया।
अगस्त 2004 में केन्या के पूर्व कप्तान मॉरिश ओडेंबे पर पांच साल का प्रतिबंध लगाया गया। उन्हें कई मैचों में पैसे लेकर फिक्सिंग करने का दोषी पाया गया था। नवंबर, 2004 में न्यूजीलैंड के पूर्व कप्तान स्टीफेन फ्लेमिंग ने दावा किया कि उन्हें एक भारतीय खेल आयोजक ने 1999 में खेले गए विश्व कप में खराब प्रदर्शन करने के लिए 3 लाख 70 हजार डॉलर की रकम पेश की थी।
2008 में मैरियन सैमुअल्स को दो साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया। उन पर 2007 में भारत दौरे के दौरान एक भारतीय सट्टेबाज द्वारा फिक्सिंग के लिए पैसे लेने का आरोप सिद्ध किया गया था। 2010 में दानिश कनेरिया और मार्विन वेस्टफील्ड को काउंटी क्रिकेट में फिक्सिंग की जांच के मामले में गिरफ्तार किया गया। हालांकि बाद में उन्हें छोड़ दिया गया।

  2010 में इंग्लैंड दौरे के दौरान पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के तीन खिलाड़ी मोहम्मद आसिफ, मोहम्मद आमीर और पूर्व कप्तान सलमान बट स्पॉट फिक्सिंग मामले में दोषी पाए गए थे। मोहम्मद आसिफ और मोहम्मद आमीर नो बॉल फिक्स करके इस मामले में फंसे थे, जबकि पूर्व कप्तान सलमान बट की इस पूरे मामले में संलिप्तता थी। मामला सामने के आने के बाद तीनों खिलाड़ियों पर तुरंत अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई। इसके अंतर्गत सलमान बट पर 10 साल का प्रतिबंध लगा, जबकि मोहम्मद आसिफ पर सात साल और मोहम्मद आमीर पर पांच साल का क्रिकेट खेलने पर प्रतिबंध लगा। इस मामले में नवंबर, 2011 में सलमान बट को 30 महीने, मोहम्मद आसिफ को एक साल और मोहम्मद आमीर को 6 महीने की जेल की सजा हुई।

क्रिकेट में मैच फिक्सिंग और स्पॉट फिक्सिंग का मामले पर दिमाग में चंद पक्तियां उमड़ रही हैं कि-

घनघोर घटा छाई सावन में,
बरस जा तू होले-होले
कुछ मै भीगू-कुछ तुझे भीगाऊं,
बारिश के इस मौसम में
सूखे पड़े थे खेत हमारे,
धरती भी गई थी गरमाई
न फसल उगी थी - न उगी थी घास,
लेकिन अबके आया सावन ऐसा
कि बढ़ गई थी हमारी आस
 विकास की उम्मीद पर,
हम निकले थे साथ-साथ
अफसोस! सावन आया भी कैसा,
न ठंडी हुई धरती न पूरी हुई आस। - विकास सक्सेना
  

Thursday 9 May 2013

... दुनिया के सात अजूबे ...


       ये दुनिया बहुत ही खूबसूरत है। एक से बढ़कर एक दिलकश नज़ारों से सजी इस धरती को प्रकृति ने अलग ही ढंग से सजाया है। इस धरती को प्रकृति ने ऐसे कई तोहफों से नवाज़ा है,,, जिसकी कल्पना करना भी इंसान के लिए सपने सरीखा है। नेचर ने दुनिया को इतना रंगीन बनाया है,,, जिसके सामने इंसान की सोच के रंग भी फीके पड़ जाते हैं। दरअसल प्रकृति के इन खूबसूरत नज़ारों को और सुन्दर बनाने की ललक इंसान में हमेशा से रही है। इसी के चलते इंसानों ने धरती पर ऐसी खूबसूरत कृतियां तैयार कीं,,, जिनके नज़ारों ने इस दुनिया को और भी बेशकीमती बना दिया है।    
पूरी दुनिया में यूं तो इंसानों की बनाई गई ऐसी हज़ारों कृतियां हैं,,, जिन्हें देखकर आप अचंभित रह जाएंगे। लेकिन इन सबसे अलग दुनिया के सात अजूबों की बात ही कुछ अलग है। असल में ये अजूबे हैं इसलिए अलग हैं।  दुनिया के सात अजूबे अपनी वास्तु कला, इतिहास और भवन निर्माण की कला में अद्भुत होने की वजह से अजूबों की सूची में शामिल होते हैं। लगभग बाइस सौ साल पहले यूनानी विद्वानों ने पुराने समय के विश्व के 7 अजूबों की एक सूची बनाई थी। लंबे समय तक वह सूची चलती रही। लेकिन 7 जुलाई 2007 को यूनानी विद्वानों की ओर से चुने गये 7 अजूबों को बदल दिया गया। दरअसल ये बदलाव इसलिए किया गया था,,, क्यों कि सभी आश्चर्यजनक मानव निर्मित कृतियां टूट गयीं या ढह गईं थी। ये बात हैरान करती है कि दुनिया में सबसे प्राचीन सात अजूबों में से वर्तमान में सिर्फ एक ही इमारत शेष बची है। और वह है गीज़ा का विशाल पिरामिड। यह पिरामिड मिस्त्र में स्थित है। मिस्त्र में बने इन पिरामडों की रचना एक पहेली है। फाराओह खुफु की याद में बनाए गए इस पिरामिड की खासियत यह है कि,,, इनके पत्थरों को पानी में काटकर, फिर एक के ऊपर एक रखकर बनाया गया है। पत्थरों को कुछ इस तरह से रखा गया है कि इसमें एक बाल घुसने की भी जगह नहीं है। मजबूती और अनोखी कला की मिसाल ये इमारत अब तक समय की मार झेलता हुआ खड़ा है। शिल्पकारों ने अनोखी कला का परिचय देते हुए इस रचना को विशाल आकार दिया था। लेकिन शिल्पकारों की कल्पना को मूर्तरूप देने वाला अद्भुत नज़ारा आज भी यहां आने वाले लोगों के लिए एक पहली है।  
लेकिन 6 इमारतें इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए दफन हो चुकी हैं। जिनमें से एक थी,,, बेबीलोन के झूलते बागीचे। इसके नाम से ही लगता है यह बगीचे कितने अनोखे होंगे। यह प्राचीन बेबीलोन में बना था जो आज इराक में अल-हिल्लह नामक स्थान के पास है। यह उद्यान यहां के राजा नेबूचड्नेजार ने 600 ईसवी पूर्व बनवाया था। कहा जाता है कि अपनी पत्नी को खुश करने के लिए उन्होने इस उद्यान बनवाया था। पर समय की मार और भूकंप ने इस विचित्र अजूबे को धरती में दफन कर दिया।
मिस्त्र में दुनिया का एक और अजूबा पाया जाता था और वह था सिकन्दरिया का प्रकाश स्तम्भ,,, माना जाता है समुद्री नाविकों को राह दिखाने के लिए इस प्रकाश स्तंभ की रचना की गई थी। हज़ारों साल पहले बनी इस इमारत की ऊंचाई 450 फीट तक बताई जाती है। मिस्त्र के देवता फराओ की याद में बना यह प्रकाश स्तंभ अब इतिहास की बात बनकर रह गया है।
वहीं चौथा अजूबा था ओलंपिया में जियस की मूर्ति,, जो कि यूनान में स्थित थी। इस मूर्ति का निर्माण यूनानी मूर्तिकार फ़िडी्यास ने ईसा से 432 साल पूर्व किया था। इस मूर्ति को यूनान के ओलंपिया में स्थित जियस के मंदिर में स्थापित किया गया था। इस मूर्ति में जियस को बैठी हुई अवस्था में दिखाया गया था। मूर्ति की ऊंचाई 12 मीटर थी। आग की वजह से इस इमारत को भी अब सिर्फ इतिहास के पन्नों में ही देख सकते हैं।
    वहीं तुर्की में स्थित हैलिकारनेसस का मकबरा भी सात अजूबों में एक था। हैलिकारनेसस में बनी यह इमारत 150 फीट ऊंची थी। और एक मकबरे की आकृति में थी। 623 ईसा पूर्व इस इमारत की रचना की गई थी। मौसोलस नाम के शासक की याद में इस इमारत को बनवाया गया था।
    इतिहास के पन्नों में दफन प्राचीन सात अजूबों में से एक आर्तिमिस का मंदिर भी था। जो कि तुर्की स्थित में था। ग्रीक देवता अर्तिमिस को समर्पित इस मंदिर को बनने में 120 साल लगे थे। कहा जाता है कि कई हमलों की वजह से मूल मंदिर तो पहले ही तबाह हो गया था। लेकिन एलेक्जेंडर द ग्रेट ने इसे दोबारा से बनवाया था। पर फिर एक हमलावर ने इसे नष्ट कर दिया।
 वहीं नष्ट हो चुकी कृतियों में एक थी रोड्‌स के कोलोसस की मूर्ति,, जो कि करीब 300 ईसा पूर्व निर्मित हुई थी। यह राजा रोड्स की साइप्रस के राजा पर मिली जीत की खुशी में बनाई गई थी।. नष्ट होने से पहले इस मूर्ति की ऊंचाई लगभग 30 मीटर थी,,, जो कि इसे विश्व की सबसे बड़ी इमारत बनाती थी। भूकंप की वजह से यह इमारत भी ढह गई
    नेस्त्रोनाबूद हुईं ये कृतियां आज इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह गई हैं। अब ना तो ये कृतियां रहीं,,, औऱ ना ही ये अजूबे रहे। बदलाव की एक लहर ने इन कृतियों से सात अजूबों का ताज छीन लिया। और नए सिरे से जन्म दिया सात अजूबों को। चुने हुए सात नए अजूबों की तरीख भी बड़ी अजीब है। 7 जुलाई 2007। यानी 07-07-07 को 7 नए अजूबों का जन्म। बदलाव की ये लहर 1999 में शुरू की गई। और इसके लिए मतदान हुआ 2005 को। पूरी दुनिया से करीब 200 मानव निर्मित कृतियों के नाम आए।. जो कम होते-होते सिर्फ 21 ही बचे। जिनमें से आखिरकार सात चुने गए। हालांकि कई देशों के लोगों ने चुनने के इस तरीके पर असहमति जताई। लेकिन वर्तमान के पन्नों में चुने हुए ही सात अजूबों का नाम लिखा गया।
   संसार के अब सात नए अजूबों में से एक है क्राइस्ट द रिडीमर। यानी उद्धार करने वाले ईसा मसीह की मूर्ति। जो कि ब्राजील के रियो डि जनेरियो में पहाड़ी के ऊपर स्थित है। ये मूर्ति 130 फुट ऊँची है। और यह क्रॉस या सलीब के आकार की है। जो कि ईसा मसीह का प्रतीक है,  कंक्रीट और पत्थर से बनी ये मूर्ति 1931 में बनाई गई थी। कहा जाता है कि लोगों की ओर से दिए गए दान से इसे बनाया गया था। यह विश्व में ईसा मसीह की सबसे बड़ी मूर्ति है।
   चीन की दीवार भी नए सात अजूबों में शामिल है।  चीन ने अपनी सुरक्षा के लिए सभी सीमाओं को एक दीवार से घेर दिया था। यह दीवार 5वीं सदी ईसा पूर्व में बननी शुरू हुई थी,,, और 16 वीं सदी तक बनती रही।. यह चीन की उत्तरी सीमा पर बनाई गयी थी। जिससे कि मंगोल आक्रमणकारियों को चीन के अंदर आने से रोका जा सके। यह लगभग 4000 मील यानी छह हज़ार चार सौ किलोमीटर तक फैली है। इसकी सबसे ज्यादा ऊंचाई 35 फुट है। जो इसे सुरक्षा देती है। यह दीवार इतनी चौड़ी है,,कि इस पर 5 घुड़सवार या 10 पैदल सैनिक गश्त लगा सकते हैं।. बाद में इसमें निरीक्षण मीनारें बना कर दूर से आते शत्रुओं पर निगाह रखने के लिये भी इस्तेमाल किया गया,,, साथ ही इसका इस्तेमाल चीन को दूसरे देशों से अलग करने के लिये भी हुआ। कहा जाता है कि इसे बनाने में 3000 मज़दूरों की जानें गईं और कई मजदूर इसे अपनी पूरी जिन्दगी भर बनाते रहे।
   रोम का कॉलोसियम भी इन सात अजूबो में से एक है। यह एक विशाल खेल स्टेडियम है। जिसे लगभग 70 सदी में सम्राट वेस्पेसियन ने बनाया था। इसमें 50,000 तक लोग इकट्‌ठे होकर जंगली जानवरों और गुलामों की खूनी लड़ाइयों के खेल देखा करते थे। इस स्टेडियम में सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते थे। इस स्टेडियम की नकल करना आज तक नामुमकिन है। इंजीनियरों के लिए अब तक यह एक पहेली बना हुआ है।
   वहीं,, जार्डन का 'पेत्रा' भी वर्तमान के सात अजूबो में शामिल किया गया।. ऐतिहासिक शहर पेत्रा अपनी विचित्र और अनोखी वास्तुकला के लिए दुनिया के सात अजूबों में शामिल था।  अरब के रेगिस्तान के कोने में बसा पेत्रा 2000 साल पुराना शहर है। जो राजा अरेतास चतुर्थ की राजधानी था। यहां तरह तरह की इमारतें है जो लाल बलुआ पत्थर से बनी हैं और सब पर बेहतरीन नक्काशी की गई है। इसमें 138 फुट ऊंचा मंदिर, नहरें, पानी के तालाब और खुला स्टेडियम है। जिसमें 4000 लोग बैठते थे। पेत्रा जॉर्डन के लिए विशेष महत्व रखता है,,, क्यूंकि यह उसकी कमाई का जरिया है।
     दक्षिण अमरीका में एंडीज पर्वतों के बीच बसा माचू पिच्चू शहर को भी वर्तमान सात अजूबों में शामिल किया गया। यह शहर पुरानी इंका सभ्यता का सबसे बढ़िया उदाहरण है।  यह 15वीं शताब्दी तक बसा हुआ था। सतह से 2430 मीटर ऊपर एक पहाड़ी पर बसा था ये शहर। जिसमें रहना और उस शहर को बनाना ही अपने आप में अजूबा है। माना जाता है कि कभी यह नगरी संपन्न थी। पर स्पेन के आक्रमणकारी अपने साथ चेचक जैसी भयानक महामारी यहां ले आए। जिसके कारण यह शहर पूरी तरह उजड़ गया
  चिचेन इत्जा इमारत भी सात अजूबों में से एक है।  मेक्सिको में बसी चिचेन इत्जा नाम का यह इमारत दुनिया में माया सभ्यता के गौरवपूर्ण काल की गाथा गाती है। यह सभ्यता यहां पर 750 से 1200 सदी के बीच फली-फूली और यह शहर इनकी राजधानी और धर्मिक नगरी थी। उस समय के कुशल कारीगरों की मेहनत को यह इमारत अपने आप में संजोए हुए है। शहर के बीचो-बीच कुकुलकन का मंदिर है,,, जो 79 फीट की ऊंचाई तक बना है। इसकी चार दिशाओं में 91 सीढ़ियां हैं। हरेक सीढ़ी साल के एक दिन का प्रतीक है और 365 वां दिन ऊपर बना चबूतरा है।
  मोहब्बत की बेमिसाल निशानी और मुगल स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूने यानी ताजमहल को भी 7 नए अजूबों में शामिल किया गया। किसी ने सच ही कहा है कि दुनिया में प्यार से प्यारा और खूबसूरत एहसास कुछ नहीं होता। प्यार की इसी खूबसूरती को मुक्कमल किया भारत के मुगल बादशाह शाहजहां ने। जिन्होने अपनी मुहब्बत की य़ाद में बनवाई वो इमारत जिसे पूरी दुनिया ताज़ महल के नाम से जानती है। किताबों के पन्नों और टीवी में दिखने वाली ताज़ महल की अगर असल खूबसूरती देखनी है तो आपको आगरा आना होगा। दरअस्ल शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज महल की याद में ये ताजमहल बनवाया था। यह 1632 में बना और 15 साल में पूरा हुआ। कहा जाता है कि शाहजहां को उसके पुत्र ने बुढ़ापे में बंदी बना लिया था,,, और उसने अपने अंतिम दिन कैद में से ताजमहल को देखते हुए बिताए थे। यह खूबसूरत गुंबदों वाला महल चारों तरफ बगीचों से घिरा है। क्षितिज पर इसके ताज के आकार के अलावा कुछ नजर नहीं आता और मुगल शिल्पकला का यह सबसे बढ़िया उदाहरण माना जाता है। 
    दुनिया के इन सात अजूबों को देखने की चाहत सभी के दिल में है। लेकिन दुनिया के अलग-अलग देशों में होने की वजह से बहुत ही कम लोग इसके दर्शन कर पाते होंगे। इस दुनिया में ऐसी कई ऐतिहासिक इमारतें हैं। जिन्हे देखने पर अजूबों का एहसास होता है। दरअसल ये दुनिया अजूबों से भरी पड़ी है। जिनमें से कुछ तो प्रकृति की देन हैं। तो कुछ अजूबे मानव मस्तिष्क की उपज। लेकिन मानव निर्मित ऐसी कई कृतियां हैं,, जो या तो नष्ट हो चुकीं हैं। या फिर उन पर अब संकट के काले बादल मंडराने लगे हैं। क्योंकि वर्तमान के ये अजूबे सदियों पुराने हैं। इन अजूबों को भले ही प्राकृतिक आपदा का शिकार होना पड़ रहा हो। लेकिन ये सच है कि प्रकृति की खूबसूरत धरोहर को इंसानी सोच खत्म करता जा रहा है।    समुद्र, पहाड़ और ज़मीन के मिलन से प्रकृति ने कुछ और भी ऐसे खूबसूरत नज़ारे हमारे लिए तैयार किए हैं। जो कि इंसानी सोच से बहुत दूर हैं। हालांकि इंसानों ने भी अपनी कोशिश के बलबूते कुछ खूबसूरत नज़ारे तैयार तो ज़रूर किए हैं,,, जिनकी दूसरी मिसाल नहीं मिलती है। बावजूद इसके ये धरोहर आज भी लोगों के दिलों पर राज करते हैं। क्यों कि इसकी अद्भुत सुंदरता की चमक सदियों पुरानी होने के बावजूद भी फीकी नहीं पड़ी है।