Thursday 9 May 2013

... दुनिया के सात अजूबे ...


       ये दुनिया बहुत ही खूबसूरत है। एक से बढ़कर एक दिलकश नज़ारों से सजी इस धरती को प्रकृति ने अलग ही ढंग से सजाया है। इस धरती को प्रकृति ने ऐसे कई तोहफों से नवाज़ा है,,, जिसकी कल्पना करना भी इंसान के लिए सपने सरीखा है। नेचर ने दुनिया को इतना रंगीन बनाया है,,, जिसके सामने इंसान की सोच के रंग भी फीके पड़ जाते हैं। दरअसल प्रकृति के इन खूबसूरत नज़ारों को और सुन्दर बनाने की ललक इंसान में हमेशा से रही है। इसी के चलते इंसानों ने धरती पर ऐसी खूबसूरत कृतियां तैयार कीं,,, जिनके नज़ारों ने इस दुनिया को और भी बेशकीमती बना दिया है।    
पूरी दुनिया में यूं तो इंसानों की बनाई गई ऐसी हज़ारों कृतियां हैं,,, जिन्हें देखकर आप अचंभित रह जाएंगे। लेकिन इन सबसे अलग दुनिया के सात अजूबों की बात ही कुछ अलग है। असल में ये अजूबे हैं इसलिए अलग हैं।  दुनिया के सात अजूबे अपनी वास्तु कला, इतिहास और भवन निर्माण की कला में अद्भुत होने की वजह से अजूबों की सूची में शामिल होते हैं। लगभग बाइस सौ साल पहले यूनानी विद्वानों ने पुराने समय के विश्व के 7 अजूबों की एक सूची बनाई थी। लंबे समय तक वह सूची चलती रही। लेकिन 7 जुलाई 2007 को यूनानी विद्वानों की ओर से चुने गये 7 अजूबों को बदल दिया गया। दरअसल ये बदलाव इसलिए किया गया था,,, क्यों कि सभी आश्चर्यजनक मानव निर्मित कृतियां टूट गयीं या ढह गईं थी। ये बात हैरान करती है कि दुनिया में सबसे प्राचीन सात अजूबों में से वर्तमान में सिर्फ एक ही इमारत शेष बची है। और वह है गीज़ा का विशाल पिरामिड। यह पिरामिड मिस्त्र में स्थित है। मिस्त्र में बने इन पिरामडों की रचना एक पहेली है। फाराओह खुफु की याद में बनाए गए इस पिरामिड की खासियत यह है कि,,, इनके पत्थरों को पानी में काटकर, फिर एक के ऊपर एक रखकर बनाया गया है। पत्थरों को कुछ इस तरह से रखा गया है कि इसमें एक बाल घुसने की भी जगह नहीं है। मजबूती और अनोखी कला की मिसाल ये इमारत अब तक समय की मार झेलता हुआ खड़ा है। शिल्पकारों ने अनोखी कला का परिचय देते हुए इस रचना को विशाल आकार दिया था। लेकिन शिल्पकारों की कल्पना को मूर्तरूप देने वाला अद्भुत नज़ारा आज भी यहां आने वाले लोगों के लिए एक पहली है।  
लेकिन 6 इमारतें इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए दफन हो चुकी हैं। जिनमें से एक थी,,, बेबीलोन के झूलते बागीचे। इसके नाम से ही लगता है यह बगीचे कितने अनोखे होंगे। यह प्राचीन बेबीलोन में बना था जो आज इराक में अल-हिल्लह नामक स्थान के पास है। यह उद्यान यहां के राजा नेबूचड्नेजार ने 600 ईसवी पूर्व बनवाया था। कहा जाता है कि अपनी पत्नी को खुश करने के लिए उन्होने इस उद्यान बनवाया था। पर समय की मार और भूकंप ने इस विचित्र अजूबे को धरती में दफन कर दिया।
मिस्त्र में दुनिया का एक और अजूबा पाया जाता था और वह था सिकन्दरिया का प्रकाश स्तम्भ,,, माना जाता है समुद्री नाविकों को राह दिखाने के लिए इस प्रकाश स्तंभ की रचना की गई थी। हज़ारों साल पहले बनी इस इमारत की ऊंचाई 450 फीट तक बताई जाती है। मिस्त्र के देवता फराओ की याद में बना यह प्रकाश स्तंभ अब इतिहास की बात बनकर रह गया है।
वहीं चौथा अजूबा था ओलंपिया में जियस की मूर्ति,, जो कि यूनान में स्थित थी। इस मूर्ति का निर्माण यूनानी मूर्तिकार फ़िडी्यास ने ईसा से 432 साल पूर्व किया था। इस मूर्ति को यूनान के ओलंपिया में स्थित जियस के मंदिर में स्थापित किया गया था। इस मूर्ति में जियस को बैठी हुई अवस्था में दिखाया गया था। मूर्ति की ऊंचाई 12 मीटर थी। आग की वजह से इस इमारत को भी अब सिर्फ इतिहास के पन्नों में ही देख सकते हैं।
    वहीं तुर्की में स्थित हैलिकारनेसस का मकबरा भी सात अजूबों में एक था। हैलिकारनेसस में बनी यह इमारत 150 फीट ऊंची थी। और एक मकबरे की आकृति में थी। 623 ईसा पूर्व इस इमारत की रचना की गई थी। मौसोलस नाम के शासक की याद में इस इमारत को बनवाया गया था।
    इतिहास के पन्नों में दफन प्राचीन सात अजूबों में से एक आर्तिमिस का मंदिर भी था। जो कि तुर्की स्थित में था। ग्रीक देवता अर्तिमिस को समर्पित इस मंदिर को बनने में 120 साल लगे थे। कहा जाता है कि कई हमलों की वजह से मूल मंदिर तो पहले ही तबाह हो गया था। लेकिन एलेक्जेंडर द ग्रेट ने इसे दोबारा से बनवाया था। पर फिर एक हमलावर ने इसे नष्ट कर दिया।
 वहीं नष्ट हो चुकी कृतियों में एक थी रोड्‌स के कोलोसस की मूर्ति,, जो कि करीब 300 ईसा पूर्व निर्मित हुई थी। यह राजा रोड्स की साइप्रस के राजा पर मिली जीत की खुशी में बनाई गई थी।. नष्ट होने से पहले इस मूर्ति की ऊंचाई लगभग 30 मीटर थी,,, जो कि इसे विश्व की सबसे बड़ी इमारत बनाती थी। भूकंप की वजह से यह इमारत भी ढह गई
    नेस्त्रोनाबूद हुईं ये कृतियां आज इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह गई हैं। अब ना तो ये कृतियां रहीं,,, औऱ ना ही ये अजूबे रहे। बदलाव की एक लहर ने इन कृतियों से सात अजूबों का ताज छीन लिया। और नए सिरे से जन्म दिया सात अजूबों को। चुने हुए सात नए अजूबों की तरीख भी बड़ी अजीब है। 7 जुलाई 2007। यानी 07-07-07 को 7 नए अजूबों का जन्म। बदलाव की ये लहर 1999 में शुरू की गई। और इसके लिए मतदान हुआ 2005 को। पूरी दुनिया से करीब 200 मानव निर्मित कृतियों के नाम आए।. जो कम होते-होते सिर्फ 21 ही बचे। जिनमें से आखिरकार सात चुने गए। हालांकि कई देशों के लोगों ने चुनने के इस तरीके पर असहमति जताई। लेकिन वर्तमान के पन्नों में चुने हुए ही सात अजूबों का नाम लिखा गया।
   संसार के अब सात नए अजूबों में से एक है क्राइस्ट द रिडीमर। यानी उद्धार करने वाले ईसा मसीह की मूर्ति। जो कि ब्राजील के रियो डि जनेरियो में पहाड़ी के ऊपर स्थित है। ये मूर्ति 130 फुट ऊँची है। और यह क्रॉस या सलीब के आकार की है। जो कि ईसा मसीह का प्रतीक है,  कंक्रीट और पत्थर से बनी ये मूर्ति 1931 में बनाई गई थी। कहा जाता है कि लोगों की ओर से दिए गए दान से इसे बनाया गया था। यह विश्व में ईसा मसीह की सबसे बड़ी मूर्ति है।
   चीन की दीवार भी नए सात अजूबों में शामिल है।  चीन ने अपनी सुरक्षा के लिए सभी सीमाओं को एक दीवार से घेर दिया था। यह दीवार 5वीं सदी ईसा पूर्व में बननी शुरू हुई थी,,, और 16 वीं सदी तक बनती रही।. यह चीन की उत्तरी सीमा पर बनाई गयी थी। जिससे कि मंगोल आक्रमणकारियों को चीन के अंदर आने से रोका जा सके। यह लगभग 4000 मील यानी छह हज़ार चार सौ किलोमीटर तक फैली है। इसकी सबसे ज्यादा ऊंचाई 35 फुट है। जो इसे सुरक्षा देती है। यह दीवार इतनी चौड़ी है,,कि इस पर 5 घुड़सवार या 10 पैदल सैनिक गश्त लगा सकते हैं।. बाद में इसमें निरीक्षण मीनारें बना कर दूर से आते शत्रुओं पर निगाह रखने के लिये भी इस्तेमाल किया गया,,, साथ ही इसका इस्तेमाल चीन को दूसरे देशों से अलग करने के लिये भी हुआ। कहा जाता है कि इसे बनाने में 3000 मज़दूरों की जानें गईं और कई मजदूर इसे अपनी पूरी जिन्दगी भर बनाते रहे।
   रोम का कॉलोसियम भी इन सात अजूबो में से एक है। यह एक विशाल खेल स्टेडियम है। जिसे लगभग 70 सदी में सम्राट वेस्पेसियन ने बनाया था। इसमें 50,000 तक लोग इकट्‌ठे होकर जंगली जानवरों और गुलामों की खूनी लड़ाइयों के खेल देखा करते थे। इस स्टेडियम में सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते थे। इस स्टेडियम की नकल करना आज तक नामुमकिन है। इंजीनियरों के लिए अब तक यह एक पहेली बना हुआ है।
   वहीं,, जार्डन का 'पेत्रा' भी वर्तमान के सात अजूबो में शामिल किया गया।. ऐतिहासिक शहर पेत्रा अपनी विचित्र और अनोखी वास्तुकला के लिए दुनिया के सात अजूबों में शामिल था।  अरब के रेगिस्तान के कोने में बसा पेत्रा 2000 साल पुराना शहर है। जो राजा अरेतास चतुर्थ की राजधानी था। यहां तरह तरह की इमारतें है जो लाल बलुआ पत्थर से बनी हैं और सब पर बेहतरीन नक्काशी की गई है। इसमें 138 फुट ऊंचा मंदिर, नहरें, पानी के तालाब और खुला स्टेडियम है। जिसमें 4000 लोग बैठते थे। पेत्रा जॉर्डन के लिए विशेष महत्व रखता है,,, क्यूंकि यह उसकी कमाई का जरिया है।
     दक्षिण अमरीका में एंडीज पर्वतों के बीच बसा माचू पिच्चू शहर को भी वर्तमान सात अजूबों में शामिल किया गया। यह शहर पुरानी इंका सभ्यता का सबसे बढ़िया उदाहरण है।  यह 15वीं शताब्दी तक बसा हुआ था। सतह से 2430 मीटर ऊपर एक पहाड़ी पर बसा था ये शहर। जिसमें रहना और उस शहर को बनाना ही अपने आप में अजूबा है। माना जाता है कि कभी यह नगरी संपन्न थी। पर स्पेन के आक्रमणकारी अपने साथ चेचक जैसी भयानक महामारी यहां ले आए। जिसके कारण यह शहर पूरी तरह उजड़ गया
  चिचेन इत्जा इमारत भी सात अजूबों में से एक है।  मेक्सिको में बसी चिचेन इत्जा नाम का यह इमारत दुनिया में माया सभ्यता के गौरवपूर्ण काल की गाथा गाती है। यह सभ्यता यहां पर 750 से 1200 सदी के बीच फली-फूली और यह शहर इनकी राजधानी और धर्मिक नगरी थी। उस समय के कुशल कारीगरों की मेहनत को यह इमारत अपने आप में संजोए हुए है। शहर के बीचो-बीच कुकुलकन का मंदिर है,,, जो 79 फीट की ऊंचाई तक बना है। इसकी चार दिशाओं में 91 सीढ़ियां हैं। हरेक सीढ़ी साल के एक दिन का प्रतीक है और 365 वां दिन ऊपर बना चबूतरा है।
  मोहब्बत की बेमिसाल निशानी और मुगल स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूने यानी ताजमहल को भी 7 नए अजूबों में शामिल किया गया। किसी ने सच ही कहा है कि दुनिया में प्यार से प्यारा और खूबसूरत एहसास कुछ नहीं होता। प्यार की इसी खूबसूरती को मुक्कमल किया भारत के मुगल बादशाह शाहजहां ने। जिन्होने अपनी मुहब्बत की य़ाद में बनवाई वो इमारत जिसे पूरी दुनिया ताज़ महल के नाम से जानती है। किताबों के पन्नों और टीवी में दिखने वाली ताज़ महल की अगर असल खूबसूरती देखनी है तो आपको आगरा आना होगा। दरअस्ल शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज महल की याद में ये ताजमहल बनवाया था। यह 1632 में बना और 15 साल में पूरा हुआ। कहा जाता है कि शाहजहां को उसके पुत्र ने बुढ़ापे में बंदी बना लिया था,,, और उसने अपने अंतिम दिन कैद में से ताजमहल को देखते हुए बिताए थे। यह खूबसूरत गुंबदों वाला महल चारों तरफ बगीचों से घिरा है। क्षितिज पर इसके ताज के आकार के अलावा कुछ नजर नहीं आता और मुगल शिल्पकला का यह सबसे बढ़िया उदाहरण माना जाता है। 
    दुनिया के इन सात अजूबों को देखने की चाहत सभी के दिल में है। लेकिन दुनिया के अलग-अलग देशों में होने की वजह से बहुत ही कम लोग इसके दर्शन कर पाते होंगे। इस दुनिया में ऐसी कई ऐतिहासिक इमारतें हैं। जिन्हे देखने पर अजूबों का एहसास होता है। दरअसल ये दुनिया अजूबों से भरी पड़ी है। जिनमें से कुछ तो प्रकृति की देन हैं। तो कुछ अजूबे मानव मस्तिष्क की उपज। लेकिन मानव निर्मित ऐसी कई कृतियां हैं,, जो या तो नष्ट हो चुकीं हैं। या फिर उन पर अब संकट के काले बादल मंडराने लगे हैं। क्योंकि वर्तमान के ये अजूबे सदियों पुराने हैं। इन अजूबों को भले ही प्राकृतिक आपदा का शिकार होना पड़ रहा हो। लेकिन ये सच है कि प्रकृति की खूबसूरत धरोहर को इंसानी सोच खत्म करता जा रहा है।    समुद्र, पहाड़ और ज़मीन के मिलन से प्रकृति ने कुछ और भी ऐसे खूबसूरत नज़ारे हमारे लिए तैयार किए हैं। जो कि इंसानी सोच से बहुत दूर हैं। हालांकि इंसानों ने भी अपनी कोशिश के बलबूते कुछ खूबसूरत नज़ारे तैयार तो ज़रूर किए हैं,,, जिनकी दूसरी मिसाल नहीं मिलती है। बावजूद इसके ये धरोहर आज भी लोगों के दिलों पर राज करते हैं। क्यों कि इसकी अद्भुत सुंदरता की चमक सदियों पुरानी होने के बावजूद भी फीकी नहीं पड़ी है।

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