Friday 14 June 2013

राजनीति के बनते बिगड़ते समीकरण


 इन दिनों सभी टीवी चैनलों और न्यूजपेपरो में एक ही खबर छाई हुई है कि अब बीजेपी-जेडीयू का गठबंधन टूट की कगार पर है, ऐसे में जेडीयूटीएमसी और बीजेडी का एक अलग मोर्चा फेडरल फ्रंट बन सकता है क्या?

 दरअसल ये सोच भले ही कई सवालों को जन्म देता हों, लेकिन ये कहना शायद मुश्किल होगा कि कोई तीसरा मोर्चा फेडरल फ्रंट बनेगा। अगर एक फीसदी मान भी लिया जाए कि ऐसा हो सकता है तो सबसे बड़ा सवाल ये खड़ा होगा कि कांग्रेस और बीजेपी दो बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों का भविष्य क्या होगा ?  क्या होगा जब कई छोटे दल मिलकर नए गठबंधन की घोषणा करेंगे ? जब बड़ी पार्टियों के साथ छोटे दल मिलकर गठबंधन की राजनीति नहीं कर सकते तो क्या छोटे-छोटे दलों की टुकड़ियां मिलकर राजनीति को एक नई दिशा दे सकेंगी ? क्या होगा जब ये अपनी सरकार मनाएंगे, तो इस राजनीति में कई अलग तरह की अपनी राजनीति नहीं खेली जाएगी ? इसलिए ये कहना असंभव है कि तीसरा मोर्चा फेडरल फ्रंट बनेगा।

 हालांकि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और कई नेता फेडरल फ्रंट बनाने की बात जरूर कह रहे हैं लेकिन शायद वे भी जानते हैं कि ये संभव नहीं है। सिर्फ वोट बैंक की राजनीति के लिए एक नए आयाम को हवा देना सही नहीं है। अगर आंकड़ों के हिसाब से देखा जाए तो फेडरल फ्रंट वाली उन पार्टियों की लोकसभा में कुछ ऐसी तस्वीर है- जेडीयू की 20, ममता की 18 और नवीन पटनायक की पार्टी जेडीयू की 14 सीटें हैं। अगर मुलायम सिंह की पार्टी सपा को भी मिला लिया जाए इसमें तो इनकी 22 सीटें हैं। इन तीनों को मिलाकर कुल 74 सीटें होती हैं। जब कि केंद्र में सरकार बनाने के लिए कुल 271 सीटों की जरूरत होती है। ऐसे में कितनी अगर बीजेपी और कांग्रेस को हटा दिया जाए तो कितनी पार्टियों को जोड़ने की जरूरत होगी गठबंधन में ये वे लोग भली-भांति जानते होंगे जिनके मन में ये खयाल आया है। क्योंकि कांग्रेस टीडीपी अलग हो चुकी है और बीजेपी से जेडीयू अलग होने की कगार पर है। ऐसे में ये अच्छी तरह से समझा जा सकता है कि राजनीति के इस खेल में तीसरे फ्रंट की बिसात बिछाना इतना आसान नहीं होगा।

 वहीं अब ये करीब-करीब तय हो गया है कि जेडीयू और बीजेपी के रास्ते अलग होंगे। जेडीयू ने एनडीए से अलग होने का फैसला तो कर लिया है, लेकिन अभी कोई आधिकारिक ऐलान नहीं किया गया है। हालांकि जेडीयू के लिए बीजेपी से 17 साल के पुराने रिश्तों को तोड़ना भले ही अभी महंगा साबित न हो, और वे अपनी सरकार भी बचा लें। लेकिन आने वाला समय शायद इन राजनीति समीकरणों को बदल भी सकता है।

 मौजूदा विधानसभा के आकड़े को देखा जाए तो जेडीयू अकेले भी सरकार बनाए रखने दम रखती है। क्यों कि बिहार में विधानसभा की कुल 243 सीटें हैं। बहुमत का आंकड़ा 122 है। जेडीयू के पास स्पीकर के अलावा 117 सीटें हैं और बीजेपी की 91 सीटें हैं। बिहार विधानसभा में आरजेडी की 22, कांग्रेस की 4, सीपीआई और एलजेपी की 1-1 और 6 निर्दलीय हैं। यानी जेडीयू की अपनी 117 सीटों के साथ अगर 6 निर्दलीयों को भी जोड़ लिया जाए तो आंकड़ा 123 पहुंच जाता है। स्पीकर उदय नारायण चौधरी भी जेडीयू के नेता हैं। उन्हें भी जोड़ लिया जाए तो आंकड़ा 124 हो जाता है। यानी जेडीयू को सिर्फ 4 निर्दलीय विधायकों की मदद चाहिए। 

 राजनीतिक उठापटक के बीच जेडीयू के नेताओं ने निर्दलीय विधायकों के साथ बैठक करनी भी शुरू कर दी है। निर्दलीय विधायक पहले से ही जेडीयू और नीतीश कुमार के साथ रहे हैं। निर्दलीय विधायकों ने भी ऐलान किया कि वो बीजेपी के जेडीयू से अलग होने पर वो नीतीश कुमार का साथ देंगे। बनते बिगड़ते इस राजनीति समीकरण में जीत भले ही किसी की हो लेकिन ये कहना गलत नहीं होगा कि किसी भी पार्टी के लिए 2014 का लोकसभा चुनाव आराम से जीत पाना आसान होगा।

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