अमेरिकी में कर्ज संकट के चलते उपजी मंदी की स्थिति ने दुनिया भर के शेयर बाजार को पूरी तरह तोड़ दिया है। 05 अगस्त 2011 की सुबह से घरेलू शेयर बाजार भारी गिरावट का दौर देखा गया। वैश्विक स्तर पर खराब वित्तीय हालत एक बार फिर 2008 के मंदी संकट की ओर ले जा रही है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था के मंदी की ओर बढऩे की आशंका के चलते वैश्विक, एशियाई और घरेलू शेयर बाजार 05 अगस्त 2011 को पूरी तरह धवस्त होते दिखाई दिए। शेयर बाजार में ये गिरावट 2008 के बाद सबसे बड़ी गिरावट बताई जा रही थी। 05 अगस्त की दोपहर घरेलू शेयर बाजार में सेंसेक्स साढ़े छे सौ से ज्यादा अंक गिरकर सत्रह हजार से नीचें पहुंच गया। वहीं निफ्टी भी 52 हफ्ते के सबसे निचले स्तर पर चला गया, और ये 170 अंक से भी ज्यादा टूटकर पांच हजार एक सौ के स्तर पर पहुंच गया। अमेरिका में गहराते कर्ज संकट ने बाजार को पूरी तरह हिला कर रख दिया है। विश्लेषक,,, अमेरिका में एक और आर्थिक मंदी की अटकलें लगाने लगे हैं। जिसके चलते भारत समेत एशियाई और तमाम विदेशी बाजार बुरी तरह लुढ़क चुके हैं। इस समय अमेरिका भारी नकदी संकट से गुजर रहा है। और उसके पास अपने सरकारी खर्चों के भुगतान के लिए भी पैसे नहीं बचे हैं। अगले कुछ दिनों के लिए खर्च चलाने के लिए अमेरिकी सरकार को अपनी कर्ज सीमा को और बढ़ाने के लिए सिनेट में विधेयक पास कराना पड़ा है। हालांकि विश्लेषकों का मानना है कि सरकारी खर्चों में कटौती की शर्त पर इस विधेयक को मंजूरी तो मिल गई है। लेकिन वहां नकदी संकट का संकट अभी भी बना हुआ है। अमेरिका में घरेलू खर्च इतना ज्यादा बढ़ गया है कि वित्तीय संकट का असर पूरी दुनिया में दिखाई देने लगा है। अमेरिका औऱ यूरोप में छाया ऋण संकट , भारत में बढ़ रही महंगाई और भ्रष्टाचार, और जापान में आई प्राकृतिक आपदा जैसे कई ऐसे संकट हैं जिसकी आंच दुनिया भर के देशों की आर्थिक स्थिति को कमजोर कर रही है। अगर ये ऋण संकट और गहराया तो भारत समेत तमाम विकाशसील देशों पर भी इसका असर पडऩा तय है।
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