Tuesday 21 May 2013

आईपीएल का सावन आया ऐसा, टूट गई सारी आस


ये कैसी विडम्बना है कि अब छोटे-मोटे मैचों की भी फिक्सिंग होने लगी है। क्या कुछ खिलाड़ियों को पैसे की इतनी ज्यादा जरूरत आ पड़ी है कि वे अब फिक्सिंग तक उतर आए हैं, या फिर वे शार्टकट से पैसा कमाने की ज़द्दोज़हद में जुट गए हैं, क्या उन्हें अपनी काबलियत पर शक़ होने लगा है? दरअसल प्रतिस्पर्धा की इस दौड़ में नए और प्रतिभावान खिलाड़ी कहीं ज्यादा आगे निकल जाते हैं। और हालहीं में बनें कुछ सीनियर्स खिलाड़ी अपनी पैठ जमाने में नाकामयाब साबित होते हैं। ये नाकामयाबी ही उन्हें शार्टकट का दरवाजा दिखाती है। वैसे मैच फिक्सिंग का मामला हमेशा से सवालों के घेरे में रहा है। 
      
       स्पॉट फिक्सिंग के आरोप में फंसे राजस्थान रॉयल्स के श्रीसंत, अजीत संडीला और अंकित चाव्हाण की गिरफ्तारी से दूसरे खिलाड़ी ही नहीं बल्कि क्रिकेट प्रेमी भी दुखी होने से ज्यादा आक्रोशित हैं। क्रिकेटरों ने क्रिकेट के साथ ही नहीं बल्कि खेल प्रेमियों के साथ भी धोखा किया है। क्योंकि भारत में क्रिकेट की सफलता की वजह ऐसे क्रिकेट प्रेमी हैं जो कि इस खेल को मजहब की तरह देखते हैं, ऐसे में इस खेल में हुई यह शर्मनाक घटना खेल की लोकप्रियता को प्रभावित करती है। मैच फिक्सिंग में मुकाबले का फैसला ही फिक्स हो जाता है। कोई खिलाड़ी या टीम का कप्तान या तीन-चार खिलाड़ी मिलकर यह तय कर लेते हैं कि अमुक मैच हारना है। लेकिन स्पॉट फिक्सिंग को ज्यादा तवज्जों इसलिए मिलने लगी क्यों कि इसमें मैच फिक्सिंग की अपेक्षा जोखिम कम होता है। स्पॉट फिक्सिंग के अंतर्गत किसी विशेष गेंदबाज या बल्लेबाज को जरिया बनाकर कोई ओवर या कुछ गेंद या फिर मैच का कोई अहम हिस्सा फिक्स कराते हैं।

       स्पाट फिक्सिंग का यह काला जादू आईपीएल सीजन-5 में भी देखने को मिला था। इस मामले में पांच खिलाड़ियों को दोषी पाया गया था। मोहनीश मिश्रा, शलभ श्रीवास्तव, टीपी सुधींद्र, हरमीत सिंह और अभिनव बाली को इस मामले में दोषी पाया गया था। हालांकि ये अजीब सा संयोग ही है कि जब तीन प्रतिभाशाली क्रिकेटरों पर स्पॉट फिक्सिंग को लेकर लगाया गया एक साल का प्रतिबंध खत्म हुआ उसके कुछ समय बाद ही स्पॉट फिक्सिंग के नए काले कारनामों का खुलासा हुआ और उसमें भी तीन खिलाड़ियों को दोषी पाया गया। आईपीएल सीजन-5 में काले धब्बें गोवा के ऑफ स्पिनर अमित यादव, मध्य प्रदेश के बल्लेबाज मोहनीश मिश्रा व हिमाचल प्रदेश के आलराउंडर अभिनव बाली पर लगे थे। इन लोगों पर अब एक साल का प्रतिबंध का काला अध्याय समाप्त हो चुका है। जबकि मध्य प्रदेश के गेंदबाज टीपी सुधींद्र पर आजीवन व यूपी के गेंदबाज शलभ श्रीवास्तव पर पांच साल का प्रतिबंध लगाया गया था।

       आईपीएल के अलावा अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में भी स्पॉट फिक्सिंग के कई मामले सामने आ चुके हैं। क्रिकेट की दुनिया में सबसे पहले मैच फिक्सिंग का मामला सामने आया था 1994 में पाकिस्तान क्रिकेट टीम के कप्तान सलीम मलिक पर मैच फिक्स करने और ऑस्ट्रेलिया के पाकिस्तान दौरे पर शेन वार्न और मार्क वा को लचर प्रदर्शन करने के लिए पैसे की पेशकश का आरोप लगा। ऑस्ट्रेलिया के खिलाड़ी शेन वॉर्न और मार्क वॉ पर 1994 में ही श्रीलंका दौरे के दौरान सटोरियों को पिच और मौसम के बारे में जानकारी देने का आरोप लगा उन्हें जुर्माना भी भरना पड़ा। उसके बाद फिक्सिंग का सिलसिला चल पड़ा। 1996 में भारतीय क्रिकेट टीम के मैनेजर सुनील देव ने कुछ भारतीय क्रिकेटरों पर मैच फिक्सिंग के लिए पैसे मांगने का आरोप लगाया। 1997 में मनोज प्रभाकर ने साथी क्रिकेटरों पर 1994 के श्रीलंका दौरे के दौरान फिक्सिंग कराने के लिए 25 लाख रुपए दिलाने का आरोप लगाया।
       1998 में पाकिस्तानी गेंदबाज अताउर रहमान और वसीम अकरम पर न्यूजीलैंड के खिलाफ खराब गेंदबाजी करने के लिए तीन लाख डॉलर की पेशकश करने का आरोप लगा। 1998 में पाक क्रिकेटर राशिद लतीफ ने वसीम अकरम, सलीम मलिक, इंजमाम उल हक और एजाज अहमद पर मैच फिक्सिंग का आरोप लगाया। 1998 में शेन वार्न और मार्क वा ने माना कि उन्होंने वर्ष 1994 में श्रीलंका में खेले गए सिंगर कप के दौरान मौसम और पिच की जानकारी सट्टेबाज को बेची थी।
       2000 में दिल्ली पुलिस ने दक्षिण अफ्रीका के कप्तान हैंसी क्रोन्ये पर भारत के खिलाफ वनडे मैच में फिक्सिंग कराने का आरोप लगाया। हर्शेल गिब्स, पीटर स्ट्राइडम और निकी बोए पर भी उंगलियां उठी थीं। क्रोन्ये ने स्वीकार किया कि उन्होंने भारत में खेली गई एक दिवसीय सीरीज के दौरान अहम सूचनाएं 10 से 15 हजार डॉलर में बेचीं। अप्रैल 2000 में अफ्रीकी टीम के भारतीय टीम से 1994 में मुंबई में खेले गए एक मुकाबले में दो लाख पचास हजार डॉलर लेकर मैच हारने का खुलासा हुआ।

       जून 2000 में अफ्रीकी खिलाड़ी हर्शेल गिब्स ने स्वीकार किया था कि उनके एक पूर्व कप्तान ने उन्हें भारत में खेले गए एक मुकाबले में 20 से कम रन बनाने को कहा था। इसके बदले में उन्हें 15 हजार डॉलर दिए गए। 2000 में ही दक्षिण अफ्रीका के क्रिकेट प्रमुख अली बशिर ने खुलासा किया था कि पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड के पूर्व सीईओ माजिद खान ने उन्हें बताया है कि विश्व कप-1999 के दो मैच पहले से ही फिक्स थे। ये मैच पाकिस्तान ने भारत और श्रीलंका के खिलाफ खेले थे। जून 2000 में क्रोन्ये ने कहा कि उन्होंने एक मैच में फिक्सिंग के लिए एक लाख डॉलर लिए थे। मगर मैच फिक्स नहीं किया। जुलाई 2000 में आयकर विभाग ने कपिल देव, अजहरुद्दीन, अजय जडेजा, नयन मोंगिया और निखिल चोपड़ा के माकानों पर छापे मारे। अक्टूबर 2000 में क्रोन्ये पर आजीवन प्रतिबंध लगाया गया। नवंबर 2000 में अजहरुद्दीन को फिक्सिंग का दोषी पाया गया जबकि अजय जडेजा, मनोज प्रभाकर, अजय शर्मा और भारतीय टीम के पूर्व फीजियो अली ईरानी के संबंध सट्टेबाजों से होने की पुष्टि की गई। दिसंबर 2000 में अजहरुद्दीन और अजय शर्मा पर आजीवन प्रतिबंध लगाया गया।
अगस्त 2004 में केन्या के पूर्व कप्तान मॉरिश ओडेंबे पर पांच साल का प्रतिबंध लगाया गया। उन्हें कई मैचों में पैसे लेकर फिक्सिंग करने का दोषी पाया गया था। नवंबर, 2004 में न्यूजीलैंड के पूर्व कप्तान स्टीफेन फ्लेमिंग ने दावा किया कि उन्हें एक भारतीय खेल आयोजक ने 1999 में खेले गए विश्व कप में खराब प्रदर्शन करने के लिए 3 लाख 70 हजार डॉलर की रकम पेश की थी।
2008 में मैरियन सैमुअल्स को दो साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया। उन पर 2007 में भारत दौरे के दौरान एक भारतीय सट्टेबाज द्वारा फिक्सिंग के लिए पैसे लेने का आरोप सिद्ध किया गया था। 2010 में दानिश कनेरिया और मार्विन वेस्टफील्ड को काउंटी क्रिकेट में फिक्सिंग की जांच के मामले में गिरफ्तार किया गया। हालांकि बाद में उन्हें छोड़ दिया गया।

  2010 में इंग्लैंड दौरे के दौरान पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के तीन खिलाड़ी मोहम्मद आसिफ, मोहम्मद आमीर और पूर्व कप्तान सलमान बट स्पॉट फिक्सिंग मामले में दोषी पाए गए थे। मोहम्मद आसिफ और मोहम्मद आमीर नो बॉल फिक्स करके इस मामले में फंसे थे, जबकि पूर्व कप्तान सलमान बट की इस पूरे मामले में संलिप्तता थी। मामला सामने के आने के बाद तीनों खिलाड़ियों पर तुरंत अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई। इसके अंतर्गत सलमान बट पर 10 साल का प्रतिबंध लगा, जबकि मोहम्मद आसिफ पर सात साल और मोहम्मद आमीर पर पांच साल का क्रिकेट खेलने पर प्रतिबंध लगा। इस मामले में नवंबर, 2011 में सलमान बट को 30 महीने, मोहम्मद आसिफ को एक साल और मोहम्मद आमीर को 6 महीने की जेल की सजा हुई।

क्रिकेट में मैच फिक्सिंग और स्पॉट फिक्सिंग का मामले पर दिमाग में चंद पक्तियां उमड़ रही हैं कि-

घनघोर घटा छाई सावन में,
बरस जा तू होले-होले
कुछ मै भीगू-कुछ तुझे भीगाऊं,
बारिश के इस मौसम में
सूखे पड़े थे खेत हमारे,
धरती भी गई थी गरमाई
न फसल उगी थी - न उगी थी घास,
लेकिन अबके आया सावन ऐसा
कि बढ़ गई थी हमारी आस
 विकास की उम्मीद पर,
हम निकले थे साथ-साथ
अफसोस! सावन आया भी कैसा,
न ठंडी हुई धरती न पूरी हुई आस। - विकास सक्सेना
  

2 comments:

Haresh Kumar said...

इस खेल में बड़े-बड़े सूरमा शामिल हैं और काला धन जहां हो वहां फिर किस तरह की शर्म। पावर, पैसा और महिलाओं के उपयोग ने इस खेल पर प्रशन चिन्ह लगा दिया है। सभ्य समाज का खेल कहा जाने वाला क्रिकेट आजकल विवादों के घेऱे में आ चुका है। जिस बीसीसीआई का पूरा प्रबंधन ही काला धन और राजनीतिज्ञों की चारागाह हो उससे यह उम्मीद करना कि वह स्पॉट फिक्सिंग में सही जांच करके कड़े कदम उठायेगा, अपने आप में हास्यास्पद है। जहां, शरद पवार, राजीव शुक्ला, एस श्रीनिवासन, अरुण जेटली जैसे घाघ लोग हों, वहां कानून क्या कर सकता है। कानून को तो सबूत चाहिए और सबूत को किस तरह से नष्ट किया जाता है, इनसे बेहतर कौन जानता है? अजहरुद्दीन पर जब आजीवन प्रतिबंध का केस आंध्र प्रदेश के उच्च न्यायालय में चल रहा था तो उसे भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने ना सिर्फ बचाया बल्कि उच्च न्यायालय ने जब जांच की प्रक्रिया पर सवाल उठाये तब भी इसने 90 दिनों के अंदर ना ही सरकार या बीसीसीआई ने अपील की। तो सारी प्रक्रिया को आसानी से समझा जा सकता है। 2006 में तो उसे आईसीसी चैंपियन्स ट्रॉफी के दौरान सम्मानित भी किया गया और इतनी ही नहीं मुरादाबाद से कांग्रेसस के टिकट पर सांसद भी बन गए। अजहर का केस लड़ने वालों में पी.चिदंबरम सबसे आगे थे। अब इस पर भी कोई शक है कि सब कुछ पाक-साफ हो जाएगा इन सारी घटनाओं के बाद। अजहर को जब कांग्रेस पार्टी ने टिकट दिया ता तब उन पर आजीवन प्रतिबंध लगा था

Haresh Kumar said...

अजहरुद्दीन पर जब आजीवन प्रतिबंध का केस आंध्र प्रदेश के उच्च न्यायालय में चल रहा था तो उसे भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने ना सिर्फ बचाया बल्कि उच्च न्यायालय ने जब जांच की प्रक्रिया पर सवाल उठाये तब भी इसने 90 दिनों के अंदर ना ही सरकार या बीसीसीआई ने अपील की। तो सारी प्रक्रिया को आसानी से समझा जा सकता है। 2006 में तो उसे आईसीसी चैंपियन्स ट्रॉफी के दौरान सम्मानित भी किया गया और इतनी ही नहीं मुरादाबाद से कांग्रेसस के टिकट पर सांसद भी बन गए। अजहर का केस लड़ने वालों में पी.चिदंबरम सबसे आगे थे। अब इस पर भी कोई शक है कि सब कुछ पाक-साफ हो जाएगा इन सारी घटनाओं के बाद। अजहर को जब कांग्रेस पार्टी ने टिकट दिया ता तब उन पर आजीवन प्रतिबंध लगा था

जिस बीसीसीआई का पूरा प्रबंधन ही काला धन और राजनीतिज्ञों की चारागाह हो उससे यह उम्मीद करना कि वह स्पॉट फिक्सिंग में सही जांच करके कड़े कदम उठायेगा, अपने आप में हास्यास्पद है। जहां, शरद पवार, राजीव शुक्ला, एस श्रीनिवासन, अरुण जेटली जैसे घाघ लोग हों, वहां कानून क्या कर सकता है। कानून को तो सबूत चाहिए और सबूत को किस तरह से नष्ट किया जाता है, इनसे बेहतर कौन जानता है?