Thursday 30 May 2013

पत्रकारिता मायने आजादी


     बदलते समय के साथ-साथ हिंदी पत्रकारिता ने आज 187 वर्ष पूरे कर लिए हैं।  भारतीय पत्रकारिता के इतिहास में 30 मई का दिन हिंदी पत्रकारिता के रूप में मनाया जाता है। 30 मई 1826 को पं. युगुल किशोर शुक्ल ने देश के पहले हिन्दी समाचार पत्र उदंत मार्तण्ड का प्रकाशन व संपादन किया। हालांकि इससे पहले भारत में कई समाचार पत्रों का प्रकाशन होता था, लेकिन वे सब अंग्रेज़ी, फारसी और बांग्ला में थे। किंतु हिंदी में एक भी पत्र नहीं निकलता था। इसलिए उदंत मार्तडका प्रकाशन शुरू किया गया। इसके संपादक भी श्री जुगुलकिशोर शुक्ल ही थे। वे मूल रूप से कानपुर के निवासी थे। कलकता के कोलू टोला नामक मोहल्ले की 37 नंबर आमड़तल्ला गली से पं. जुगलकिशोर शुक्ल ने सन् 1826 ई. में उदन्त मार्तण्ड नामक एक हिंदी साप्ताहिक पत्र निकालने का आयोजन किया।

      उदन्त मार्तण्ड का शाब्दिक अर्थ है समाचार-सूर्य। अपने नाम के अनुरूप ही उदन्त मार्तण्ड हिंदी की समाचार दुनिया के सूर्य के समान ही था। उदन्त मार्तण्ड का प्रकाशन मूलतः कानपुर निवासी पं. युगल किशोर शुक्ल ने किया था। यह पत्र ऐसे समय में प्रकाशित हुआ था जब हिंदी भाषियों को अपनी भाषा के पत्र की आवश्यकता महसूस हो रही थी। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर उदन्त मार्तण्डका प्रकाशन किया गया था।

     उदंत मार्तण्ड ने समाज में चल रहे विरोधाभासों एवं अंग्रेज़ी शासन के विरूद्ध आम जन की आवाज़ को उठाने का कार्य किया था। कानूनी कारणों एवं ग्राहकों के पर्याप्त सहयोग न देने के कारण 19 दिसंबर, 1827 को युगल किशोर शुक्ल को उदन्त मार्तण्ड का प्रकाशन बंद करना पड़ा। हिंदी और पत्रकारिता से अपने प्रेम को पं. जुगल किशोर ने जो आयाम दिया वह अविस्मर्णीय है।
     कागज से शुरू हुई पत्रकारिता अब कन्वर्जेंस के युग में पहुंच गई है। कन्वर्जेंस के कारण आज खबरें रेडियो, टेलीविजन, इंटरनेट और मोबाइल पर कई रूपों में उपलब्ध है। पहले की पत्रकारिता ने देश के स्वतंत्रता में अहम योगदान निभाया लेकिन आज की पत्रकारिता के मायने कहीं खो से गए हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि अब यह पूरी तरह से पूंजीवाद पर निर्भर है।

     भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अंग्रेजी और भाषाई पत्रकारिता की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। ईस्ट इंडिया कंपनी की दमननीति के विरुद्ध आवाज के रूप में स्वाधीनता की प्रबल उमंग ने पत्रकारिता की नींव डाली थी। उस समय पत्रकारिता का मूल उद्देश्य अंग्रेजों की दमन नीतियों को हटाना, समाज सुधार, समाज में स्त्रियों की स्थिति में सुधार और रूढि़यों का उन्मूलन था। उस समय पत्रकारिता के सामाजिक सरोकार शीर्ष पर थे और व्यावसायिक प्रतिबद्धताएं इनमें बाधक नहीं थीं। इस पत्र के माध्यम से ही पं. युगुल किशोर ने शोले की तरह अपनी प्रखर व तेजस्वनी वाणी से जनता में स्वतंत्रता की भावना भर दी। इस पर वरिष्ठ पत्रकार जगदीश प्रसाद चतुर्वेदी ने लिखा है - जहां तक क्रांतिकारी आंदोलन का संबंध है भारत का क्रांतिकारी आंदोलन बंदूक और बम के साथ नही समाचारपत्रों से शुरु हुआ है।

    आर्थिक कठिनाइयों के कारण हिंदी के आदि पत्रकार पं. जुगल किशोर शुक्ल ने 'उदंत मार्तंड' का प्रकाशन बंद कर दिया था, किंतु इसका अर्थ यह नहीं कि आर्थिक कठिनाइयों ने उनकी निष्ठा को ही खंडित कर दिया था। यदि उनकी निष्ठा टूट गई होती तो वे पुनः पत्र-प्रकाशन का साहस न करते। उन्होंने 1850 में दोबारा से 'सामदंत मार्तंड' नाम का एक पत्र प्रकाशित किया था।

     हालांकि भारत में पत्रकारिता की नींव जेम्स अगस्टन हिक्की ने रखी। हिक्की भारत के प्रथम पत्रकार थे जिन्होंने प्रेस की स्वतंत्रता के लिये ब्रिटिश सरकार से संघर्ष किया। 29 जनवरी 1780 में पहला भारतीय समाचार पत्र बंगाल गजट एंड कलकत्ता एडवरटाइजर्स कलकत्ता से अंग्रजी में निकाला। इसका आदर्श वाक्य था - सभी के लिये खुला फिर भी किसी से प्रभावित नहीं। अपने निर्भीक आचरण और विवेक पर अड़े रहने के कारण हिक्की को इस्ट इंडिया कंपनी का कोपभाजन बनना पड़ा। हेस्टिंगस सरकार की शासन शैली की कटू आलोचना का पुरस्कार हिक्की को जेल यातना के रूप में मिली।

      स्वतंत्रता आंदोलन के समय में कई संपादकों को जेल की यातनाओं को भी सहन करना पड़ा। बावजूद इसके पत्रकारिता ने अपनी गरिमा को बरकरार रखा। लेकिन आधुनिक युग की पत्रकारिता में आए कई तरह के बदलाव ने पत्रकारिता की गरिमा को ताक पर रख दिया है। 

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