हर
चेहरा यहां चांद है, हर जर्रा सितारा।
ये वादी-ए-कश्मीर
है, जन्नत का नजारा।।
भारतीय
उपमहाद्वीप का एक हिस्सा जम्मू-कश्मीर,,, जो प्राकृतिक सुंदरता के लिए दुनिया भर में
मशहूर है। यही वजह है कि इसे
धरती के स्वर्ग के नाम से भी पुकारा जाता है,,, यहां की फ़िज़ा इतनी खूबसूरत है। कि ये हर किसी का मन मोह लेती
है। कश्मीर की गिनती
दुनिया के चुनिंदा पर्यटन स्थलों में होती है। तभी तो पर्यटकों से हर साल गुलजार होती है वादी-ए-कश्मीर। यहां देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी
हजारों सैलानी आते हैं। गर्मियों
के दस्तक देते ही यहां पर्यटकों का जमावड़ा लगना शुरू हो जाता है। गुलमर्ग जम्मू और कश्मीर का एक खूबसूरत हिल स्टेशन है। इसकी सुंदरता को देखकर आप खुद ही समझ
जाएंगे कि कश्मीर को धरती का स्वर्ग
क्यों कहा जाता है। फूलों
के प्रदेश के नाम से मशहूर यह स्थान बारामूला जिले में स्थित है। समुद्र तल से 2730 मी की ऊंचाई पर बसे गुलमर्ग में सर्दी के मौसम के दौरान यहां बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं। गुलमर्ग की स्थापना अंग्रेजों ने 1927 में अपने शासनकाल के दौरान की
थी।कहा जाता है कि गुलमर्ग का असली नाम गौरीमर्ग था,, जो यहां के चरवाहों ने इसे दिया था। 16वीं शताब्दी में सुल्तान युसुफ शाह ने इसका नाम
गुलमर्ग रखा।यहां के हरे भरे ढलान सैलानियों को अपनी ओर खींचते हैं।दुनिया के सबसे
ऊँचे बर्फ़ीले क्षेत्रों में से एक गुलमर्ग
कश्मीर की ख़ूबसूरती को दूर से ही झलकाता है।प्रकृति के अद्भुत नजारे देखने हों
या ट्रैकिंग का मजा लेना हो, गुलमर्ग
आपके लिए बिल्कुल सही जगह है। इसकी खूबसूरती की कोई मिसाल नहीं । सर्दी के दिनों में पहाड़ियों पर दूर
तक जमी हुई बर्फ आपको रिझाएगी, तो
गर्मी के दिनों धरती पर चादर की तरह फैले फूल आपका मन को मोह लेंगे। धार्मिक पर्यटक स्थलों से भी गुलजार
होती हैं यहां की जमीं। गुलमर्ग
की वादियों का आनंद अब सामान्य पर्यटक ही नहीं बल्कि तीर्थ पर्यटक यानी अमरनाथ यात्री भी ले रहे हैं।हर
साल लाखों भक्त अमरनाथ दर्शन के लिए आते हैं। समुद्र तल से करीब 14 हजार फीट की ऊंचाई पर दक्षिणी कश्मीर के
बर्फीले पहाडों में श्री अमरनाथ
की पवित्र गुफा स्थित है। इसी
विशाल प्राकृतिक गुफा में हिमलिंग बनता है। गुफा करीब एक सौ फीट लंबी और 150 फीट चौड़ी है। यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं
को पर्वतों, पानी, ठंडी हवा और ग्लेशियर से गुजरना पड़ता
है।ये लाखों भक्त पहलगाम होते हुए अमरनाथ पहुंचते हैं। और तीर्थ पूरा कर हजारों भक्त
गुलमर्ग का रुख़ कर
लेते हैं। जिससे उन्हें दर्शन के
साथ-साथ कश्मीर की प्राकृतिक सुंदरता
का भी नजारा देखने को मिल जाता है। आज यह सिर्फ
पहाड़ों का शहर नहीं है, बल्कि यहां विश्व का सबसे बड़ा गोल्फ
कोर्स और देश का प्रमुख स्कीन रिजॉर्ट
है। दुनिया के हरे-भरे गोल्फ
कोर्स में गुलमर्ग गोल्फ कोर्स का
नाम भी शुमार है। यहां
आप कई विदेशियों को भी गोल्फ खेलते हुए देख सकते हैं। अंग्रेज यहां अपनी छुट्टियां
बिताने आते थे।
उन्होंने ही
गोल्फ के शौकीनों के लिए 1904 में इन गोल्फ कोर्स
की स्थापना की
थी। वर्तमान में इसकी देख रेख जम्मू
और कश्मीर पर्यटन विकास प्राधिकरण
करता है। स्कींग में रुचि रखने
वालों के लिए गुलमर्ग देश का नहीं
बल्कि इसकी गिनती विश्व के सर्वोत्तम स्कींग रिजॉर्ट में की जाती है। मई से सितम्बर और नवम्बर से फरवरी
के बीच गुलमर्ग का मौसम सुहावना
होता है। दिसंबर में बर्फ
गिरने के बाद यहां बड़ी संख्या में पर्यटक स्कींग करने आते हैं। जो लोग स्कींग सीखना चाहते
हैं, उनके लिए भी यह जगह
बिल्कुल सही है। यहां स्कींग
की सभी सुविधाएं और अच्छे प्रशिक्षक
भी मौजूद हैं।
गुलमर्ग में
दुनिया की सबसे ऊंची केबल कार चलती
है। यह केबल कार पांच
किलोमीटर की दूरी तय करके आपको 14,400
फीट की ऊंचाई
तक ले जाएगी। इतनी ऊंचाई से वादियां
को देखने का मजा ही कुछ और है। चारों तरफ देखने पर ऐसा प्रतीत है
कि मानो हम प्रकृति की गोद में आ गए
हों। प्रकृति का ये खूबसूरत नजारा
किसी जन्नत से कम नहीं होता है।
कश्मीर के ज्यादातर लोगों के लिए टूरिज्म एक व्यवसाय
का साधन भी है। यहां के लोगों की रोजी रोटी पर्यटकों पर निर्भर
होती हैं। पर्यटकों की संख्या जितनी अधिक होती है। उनकी
खुशियां भी उतनी ही बढ़ जाती
हैं। अपनी छोटी-2 खुशियों को और अधिक बढ़ाने के लिए कुछ लोग अपने पूरे परिवार के साथ इस कारोबार से जुड़े हैं। इनकी चाहत बस इतनी
ही रहती है कि ज्यादा से ज्यादा
पर्यटक यहां आकर प्रकृति
की इस खूबसूरती का लुत्फ़ उठाएं। जिससे कि यहां की महकती फिजाएं और खुली
वादियां इन्हें दोबारा आने पर मजबूर कर दें।हस्तशिल्प जम्मू
और कश्मीर का परपंरागत उद्योग है। हाथों से तैयारी की गई परंपरा की
निशानी है पश्मीना शॉल। परंपरा की इस निशानी को और
सुंदर बना देती
है, इस पर होने वाली कारीगरी। कहीं सोजनी वर्क,, तो कहीं महीन तिल्ला वर्क इसकी सुंदरता
में चार चांद लगा देता
है। हिमालय के ऊपरी
इलाकों में रहने वाली पश्मीना नामक बकरी
से मिलने
वाले बेहतरीन ऊन से कश्मीरी कारीगर
शॉल और स्कार्फ बनाते हैं,,, जिनकी देश-विदेश में
भारी मांग हैं।
कश्मीर में
कालीन निर्माण का काम भी भारी मात्रा में होता है।ये कालीन इतनी खूबसूरत होती हैं कि इनकी मांग
देश में हीं नहीं बल्कि विदेशों में
भी जबरदस्त है।
कश्मीर के
पर्यटन स्थल सिर्फ गर्मियों में ही नहीं,, बल्कि सर्दियों
में भी पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।
जम्मू-कश्मीर के पर्यटन स्थलों का रोचक तथ्य यह है कि आतंकवाद के दिनों में भी यहाँ आने वालों
के कदम कभी ठिठके नहीं हैं। अंतर
बस इतना होता है कि वे एक पर्यटन स्थल पर नहीं पहुँच पाते तो दूसरे पर चले जाते हैं। राज्य में यूँ तो कई पर्यटन
स्थल हैं जहाँ जाने की
चाहत हर आने वाले पर्यटक की होती है,,, पर गुलमर्ग, सोनमर्ग, पहलगाम, चंदनवाड़ी, बेताबवेली, और पटनीटाप जाए बिना शायद ही
कोई रह पाता हो। इनमें
से पहले तीन तो कश्मीर वादी में अलग-अलग दिशाओं में हैं तो चौथा पटनीटाप जम्मू संभाग में कश्मीर की ओर
जाते हुए रास्ते में पड़ता है। कश्मीर
की सुंदरता को चार चांद लगाती है यहां की डल झील। तीन दिशाओं से पहाड़ियों से घिरी डल झील जम्मू-कश्मीर की
दूसरी सबसे बड़ी झील है। पर्यटक जम्मू-कश्मीर आएँ और डल
झील देखने न जाएँ ऐसा हो ही नहीं सकता। बीते दौर के प्रख्यात अभिनेता
शम्मी कपूर की अस्थियां भी इसी
डल झील में प्रवाहित की गईं थी। डल झील के पास ही मुगलों के सुंदर और प्रसिद्ध पुष्प वाटिका से डल झील की आकृति
और उभरकर सामने आती है। मुख्य
रूप से इस झील में मछली पकड़ने का काम होता है। डल झील के मुख्य आकर्षण का केन्द्र है
यहाँ के हाउसबोट। सैलानी
इन हाउसबोटों में रहकर इस खूबसूरत
झील का आनंद उठाते हैं। यह झील, कश्मीर की घाटियों की अन्य धाराओं के साथ मिल जाती
है। झील
के चार जलाशय हैं गगरीबल,
लोकुट डल, बोड डल और नगीन। लोकुट डल के मध्य में रूप लंक
द्वीप स्थित है।जबकि बोड डल जलधारा के मध्य में सोना लंक स्थित है। कमल के फूल, पानी में बहती कुमुदनी, झील
की सुंदरता में चार चाँद लगा देती है। सैलानियों
के लिए यहां कई प्रकार के मनोरंजन
के साधन
भी उपलब्ध हैं।
जैसे कि
कायाकिंग यानी कि नौका विहार, केनोइंग यानी
डोंगी, पानी पर तैरना और
मछली पकड़ना आदि ।डल
के एक किनारे पर स्थित है शंकराचार्य मंदिर और दूसरे किनारे पर है हजरत बल दरगाह। कश्मीर
विश्वविद्यालय डल के तट पर ही
स्थित है। शिकारे के माध्यम से सैलानी
नेहरू पार्क, कानुटुर खाना, चारचीनारी, कुछ द्वीप जो यहाँ पर स्थित हैं, उन्हें
देख सकते हैं।
एक शिकारे पर
सवार होकर सैलानी विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ भी खरीद सकते हैं। क्योंकि दुकानें भी शिकारों
पर ही लगी होती हैं। सर्दियों
के मौसम में इस झील में बर्फ की चादर पड़ने लगती है। 1960 में इस झील का पानी पूरी तरह से जम गया था
और इसके
बाद यह 1986 में भी पूरी तरह बर्फ बन गया था।ये वही डल
है जिसके जमें हुए पानी पर वर्तमान केंद्रीय मंत्री फारुख अब्दुल्ला जीप चला चुके
हैं।आज भी सर्दी के दिनों में बच्चे डल पर क्रिकेट खेलते हैं। कश्मीर की खुली फिजाओं में आती भीनी-भीनी सी केसर की महक यहां आने वाले पर्यटकों का मन मोह
लेती हैं। केसर,, देश के मौजूद अनमोल प्राकृतिक संपदाओं में
से एक है। बेशकीमती केसर का
इस्तेमाल कई प्रकार की दवाइयों में किया जाता है। आजकल तो कॉस्मेटिक प्रोडक्ट बनाने वाली कंपनियां
भी केसर का खूब इस्तेमाल करने
लगी हैं। विश्व भर में गिने-चुने
देशों को ही प्रकृति ने केसर
का उपहार दिया है। इनमें
से भारत
भी एक है। खास बात यह है कि
भारत में पायी जाने वाली केसर की गुणवत्ता स्पेन और ईरान से भी कहीं ज्यादा बेहतर है। यही वजह है कि भारतीय केसर की कीमत स्पेन और ईरान की केसर से दस गुना ज्यादा होती है। भारत
में भी केवल जम्मू-कश्मीर में ही केसर की खेती होती है।कश्मीर के
अंवतीपुरा के पंपोर और जम्मू संभाग के किश्तवाड़ इलाके में केसर की खेती की जाती है। पंपोर में लगभग 10 से
15 किलोमीटर के क्षेत्र
में केसर की खेती होती है,
जबकि
किश्तवाड़ के पुशाल, हिड़ियाल, तुंद, मत्ता, चिराड़
आदि गांवों की लगभग एक हजार कैनाल जमीन में केसर की खेती की जाती है। हालांकि गुणवत्ता के मामले में किश्तवाड़ की केसर कश्मीरी केसर से
बेहतर मानी जाती है। केसर
बोने के लिए खास जमीन की आवश्यकता होती है। ऐसी जमीन जहां बर्फ पड़ती हो और जमीन में नमी मौजूद रहती हो। जिस जमीन
पर केसर बोयी जाती है वहां कोई और खेती नहीं की जा सकती।कारण है कि
केसर का बीज हमेशा जमीन के अंदर ही रहता है। केसर का थोक
भाव तो 30 से 35 हजार रुपए प्रति किग्रा होता है। जबकि खुले बाजारों में ये 45 से 50 हजार रुपए प्रति किग्रा के भाव से बिकते हैं। कश्मीर की इस जमीं
पर लाल-गुलाबी
सेबों का
जिक्र न हों तो ये अधूरी सी बात लगती है।कश्मीर के सेब सिर्फ देश में ही नही
बल्कि दुनिया भर में मशहूर
हैं।सेब के अलावा यहां के अखरोट और बादाम जैसे सूखे मेवों की मांग भी सबसे ज्यादा
है।
कितनी खूबसूरत ये तस्वीर है,,, ये कश्मीर है, ये कश्मीर है,
जी
हां बेमिसाल फिल्म का ये खूबसूरत गीत
कश्मीर की सुदंरता को चंद शब्दों में पिरो तो रहा है। लेकिन इन शब्दों से कश्मीर की खूबसूरती बयां कर पाना शायद कुछ कम
होगा। हिमालय की गोद में
बसे कश्मीर की खूबसूरत वादियों के चप्पे चप्पे में संगीत बसा है। यही वजह है कि कश्मीर की प्राकृतिक
सुदंरता का अछूता बॉलीवुड भी
नहीं रहा है।सत्तर के दशक की कई फिल्मों में कश्मीर की वादियां देखी जा सकती हैं। फिल्मकारों के कैमरे में
कश्मीर की हजारों खूबसूरत तस्वीरें
कैद हैं। अपनी सुंदरता और पहाड़ी
वादियों के अलावा चिनार के पेड़ों
और खूबसूरत डल झील के चलते यहां कई फिल्में बन चुकी हैं। 'दो बदन', 'कश्मीर की कली',
'जब जब फूल
खिले', 'आरजू', 'कभी कभी' और
'बाबी' जैसी मोहब्बत भरी हिट फिल्में बालीवुड ने दी है।
ये हंसी
वादियां, ये
खुलां आसमां, आ गए हम
कहा ऐ मेरे साजना।
रोजा फिल्म का ये दिल छू लेता गीत भी कश्मीर
में फिल्माया गया है। इस गीत के बोल भी कश्मीर की सुंदरता को
बयां कर रहे हैं।लेकिन बदलते वक्त के साथ कश्मीर की जगह स्विट्जरलैंड
और अन्य विदेशी जगहों ने ले ली। कारण महज बदलाव नहीं बल्कि घाटी में
पसरा तनाव भी था। लेकिन अब कश्मीर दोबारा
फिल्म निर्माताओं की पसंद बन रहा है। 'सात खून माफ' और 'रॉकस्टार' फिल्म इसका साक्ष्य
है।कश्मीर की सुदंरता को देखते हुए बॉलीवुड एक बार फिर कश्मीर की ओर रूख
करने को बेताब है।
कश्मीर का इतिहास
सदियों पुराना है। कश्मीर का प्राचीन नाम कश्यपमेरु और
कश्यपमीर था। जिसका मतलब था कश्यप का झील।
कहा जाता है,, कि महर्षि कश्यप श्री नगर से तीन मील
दूर हरि-पर्वत पर रहते थे। यहाँ प्रागैतिहासिक
काल में एक बहुत बड़ी झील थी,,, जिसके पानी को
निकाल कर महर्षि कश्यप ने इस स्थान को मनुष्यों
के बसने योग्य बनाया था ।
कश्मीर में मौर्य सम्राट अशोक के समय में
बौद्धधर्म ने पहली बार प्रवेश किया। श्रीनगर की स्थापना इस मौर्य सम्राट
ने ही की थी। 13वीं
सदीं में कश्मीर मुसलमानों के प्रभाव में आया…ईरान के हज़रत सैयद अली हमदान नामक संत ने अपने धर्म का
यहाँ जोरों से प्रचार किया,,, और धीरे-धीरे राज्यसत्ता भी मुसलमानों के
हाथ में पहुँच गई… कश्मीर के मुसलमानों
का राज्य 1338 ई॰ से 1587 ई॰ तक रहा…और ज़ेनुलअब्दीन
के शासनकाल में कश्मीर भारत और ईरानी संस्कृति का प्रख्यात
केंद्र बन गया। इस शासक को उसके उदार
विचारों और संस्कृति प्रेम के कारण कश्मीर का
अकबर कहा जाता है। 1587 से
1739 ई॰ तक
कश्मीर मुग़ल साम्राज्य का अभिन्न अंग बना रहा। जहांगीर
और शाहजहां के समय के अनेक स्मारक आज भी
कश्मीर के सर्वोत्कृष्ट स्मारक माने जाते हैं। इनमें
निशात बाग़, शालीमार
बाग आदि प्रमुख हैं। 1739
से 1819 ई॰ तक काबुल के राजाओं ने कश्मीर पर राज्य किया। 1819 ई॰ में पंजाब केसरी
रणजीत सिंह ने कश्मीर को काबुल के अमीर दोस्त मुहम्मद
से छीन लिया। और जल्द ही कश्मीर अंगेज़ों के हाथ में आ गया। 1846 ई॰ में ईस्ट इंडिया
कम्पनी ने कश्मीर को डोंगरा सरदार गुलाब सिंह के हाथों
बेच दिया। सन 1925 में महाराजा गुलाब
सिंह के सबसे बड़े पौत्र महाराजा हरि सिंह ने यहां की गद्दी
संभाली,,, जिसके
बाद उन्होने 1947 ई. तक शासन किया। कश्मीर के महाराजा
हरि सिंह आज़ाद रहना चाहते थे। लेकिन काबायली हमले के बाद में
उन्होंने भारत में मिलने का फ़ैसला कर लिया। 26 अक्टूबर
1947 को महाराजा
हरिसिंह ने जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय कर दिया था। 27 अक्टूबर
1947 को
लार्ड माउण्टबेटन ने विलय पत्र स्वीकार तो किया,, लेकिन उन्होंने
इसके जवाब में एक पत्र लिखकर जम्मू-कश्मीर
में जनमत संग्रह कराने की बात कही। 1 नवंबर
1947 को उन्होंने
लाहौर में मोहम्मद अली जिन्ना से बातचीत
करते हुए जम्मू-कश्मीर में जनमत संग्रह कराने की बात स्वीकार
की। जिससे तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू
ने भी अपनी सहमति जताई। जम्मू-कश्मीर में
जनमत संग्रह कराने का अधिकार लार्ड माउण्टबेटन के पास नहीं
था। क्योंकि जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय उसी
तरह किया गया जिस तरह अन्य रियासतों का।
भारतीय स्वाधीनता अधिनियम के तहत किसी भी रियासत को
भारत या पाक में शामिल होने की स्वतंत्रता थी। इसी
अधिनियम के तहत महाराजा हरिसिंह ने भी जम्मू-कश्मीर का
भारत में विलय किया। इसके बाद से ही ये इलाका भारत और
पाकिस्तान के बीच विवाद का विषय बना हुआ है। कश्मीर
को लेकर दोनों देशों के बीच दो युद्ध 1947-48 और
1965 में हो
चुके हैं।
सरहद के दोनों ओर चहकता ये चमन रहें, इन
सुंदर वादियों से महकता वतन रहें
कश्मीर न सिर्फ धरती का स्वर्ग है बल्कि
देश का सिरमौर भी है। स्वर्ग का जितना खूबसूरत रूप आज हमारे
सामने है उससे भी ज्यादा सुंदर दिखता अगर दो दशक पहले वादियों में
बारुदी गंध नही घुला होता। हर
दिन गरजते बंदूक की शोर ने वादियों से पर्यटक
पंछी को उड़ने के लिए मजबूर कर दिया था लेकिन एक बार फिर घाटी में
मौसम बदलने लगा है। अब वहां पर न तो बारुद
की गंध और न ही बंदूक की गरज।तभी तो घाटी कह रही है। आओ कि जन्नत ने खोल दी है
बाहें।